" चंद सपने रोटियों के देखिये "-नन्द मेहता वागीश ।
चंद सपने रोटियों के देखिये ,
जामे सेहत शौक से फिर पीजिये !
अर्जियां हालात की हैं बेबसी ,
अपनी मर्जी फैसले कर दीजिये !!
अपने हाथों इस चमन की लूट को ,
खुद खिजाँ के नाम ही कर दीजिये ।
भूख नंगी सो गई ,फुटपाथ पर ,
आप अपने शगल पूरे कीजिये ।
वक्त की तारीकियाँ कैसी भी हों ,
रौशनी को गोद में भर लीजिये!!!
बिछ गईं लाशें समंदर की तरह ,
vot pukhtaa aap to kar lijiye .
शुक्रवार, 14 जनवरी 2011
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