गुरुवार, 13 जनवरी 2011

प्रसव के बाद एक से डेढ़ साल लग जाता है औरत को फिर से औरत होने में ...

पोस्ट -डिलीवरी ,इट टेक्स १८ मंथ्स टू रिकवर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १३ ,२०११ ,पृष्ठ १९ )।
टफ ओरडील:ग्र्युएलिंग स्लीपलेस नाइट्स लीड टू ए डिप इन ए न्यू मोम्स कोंफिड़ेंस अमिड वरीज अबाउट लुकिंग फ्रम्पी।
बेशक माँ बनना एक अतिरिक्त गौरव और सम्पूर्णता की बात होती है औरत के लिए (उनसे पूछो जो संतान -हीनाहैं )लेकिन ममत्व के इस नए रोल से निकल कर सामान्य जीवन में लौटने आत्म -विश्वास को फिर से समेटने में १२ -१८ महीने लग जातें हैं ,एक ब्रितानी अध्ययन से ऐसी ही ध्वनी आती है जो ३००० नव -माताओं (मम्स )के एक सर्वे पर आधारित है ।
प्रसवोत्तर सबसे ज्यादा बे -चैनी का सबब बनतीं हैं लम्बाती लगतीं उनींदी सी स्लीपलेस नाइट्स जहां माँ की नींद एक बायोलोजिकल सिस्टम की नींद बन जाती है ,उसकी अपनी नींद उस रूप में अपनी सी नहीं रह जाती है जहां वह उन्मुक्त भाव से सो सके ,निर-द्वंद्व ।
फ्रम्पी (मैली -कुचेली -गैर -फेशनेबिल औरत जैसी बनती छवि की चिंता उसे सालती रहती है ) लुक्स के प्रति हर औरत डिलीवरी के बाद कुछ न कुछ अंशों में सचेत रहती है .जबकि वह गन्दी पुरानी औरत नहीं है नव -माता है .दूसरे उसके बारे में क्या सोचतें हैं क्या सोचेंगे यही उसकी सोच पर हावी सा होने लगता है .(क्यों देखिएगा आप खुद को औरों की नजर से ?)।
फिर भी सर्वे में शामिल महिलाओं में से दो तिहाई अपने को सागी /नीचे की और ढुलकती काया वाली औरत ,फेट और अनाकर्षक मान समझ रहीं थीं .(माँ -बच्चे के बीच की कई छवियाँ ,स्तनपान का बिम्ब एक सात्विक संतोष की सृष्टि नहीं करता ?आखिर वही है जो इस सृष्टि का संचालन कर रही है ,ऊर्जा का स्रोत है ,सृष्टि की निरंतरता उसी से है )।
फिर भी न जाने क्यों उसे दिन बिखरा बिखरा ,रात पराई सी लगती है .सब कुछ अव्यवस्थित सा ,बेतरतीब ।
१० में से ६ महिलायें सिर्फ इस बात से परेशान थीं उन्हें अब अपने ही पुराने पसंदीदा कपडे फिट नहीं आते ।
कामकाजी महिलायें काम पर लौटने के लिए आवश्यक आश्वस्ति सेल्फ एस्युरेंस से अपने को लैस नहीं समझ पा रहीं थीं ।
पर्सनल केयर ,फिटनेस ,फेशन ,सोसल लाइफ पृष्ठ भूमि में चली आतीं हैं ,नए मेहमान की बहुविध संभाल आगे रहती है सब कुछ के .यकीन मानिए आत्म विश्वास लौटता है ,द्विगुणित होकर लौटता है .आप एक नए रोल को अब सहर्ष स्वीकार कर चुकीं हैं .सिर्फ डेढ़ साल बीता है ....जीवन फिर से लय-ताल पकड़ने लगा है ।
'ठुमक चलत रामचंद्र ,बाज़त पैंजनियां .......'

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