मनुष्य की शारीरिक बनावट मांसाहार के अनुकूल नहीं है क्योंकि -
हमारे दांत ,ज़बड़े पाचन तथा स्रावी तंत्र (इंडो -क्रा -इन सिस्टम ) मांसाहार के अनुरूप नहीं बनें हैं ।
मांस तथा समुद्री भोजन खाने के ४ घंटा बाद ही सड़ने लगता है .इसका बचा खुचा बिना पचा अंश हमारे पेरितोनियम (पेट की दीवार )तथा इन्तेस्ताइन्स (अंत-अडियों)से ३-४ दिन तक चिपके रहतें हैं .ऐसे में जिस व्यक्ति को कब्ज़ की शिकायत रहती है ये अवशेष सड़े गले और भी देर तक इन अंगों की दीवार से चस्पा रह सकतें हैं ।
मनुष्य की लार की प्रकृति एल्केलाइन है क्षारीय है जो मांस को गला पचा नहीं पाती .जबकि शिकारी पशुओं में लार की प्रकृति अम्लीय होती है जो मांस को गलाने पचाने में एहम भा -गीदारी करती है ।
सभी मांसाहारी पशु अपने भोजन को कच्चा ही खातें हैं .शेर अपने शिकार को पेट से फाड़ता है ,खून पी जाता है पोषक अंगों को पेट आंत आदि को खा जाता है .सर्व -भक्षी/सर्वाहारी भालू कच्ची सलमान मच्छी ही खाता है ।
जहां कच्चा और ख़ूनीमांस खाना मनुष्यों में घृणा पैदा करता है वहीँ यदि कोई जंगल में पशु को भूने तो मांसाहारी पशु उसे नहीं खायेगा .सर्कस का शेर भी कच्चा मांस ही खाता है .वन्य प्राणी विहार /जू आदि में भी शेर आदि को कच्चा मांस ही परोसा जाता है ।
मनुष्य के न तो तेज़ नाखून हैं न मांस को फाड़ने के लिए नुकीले अग्र दांत .मांसाहारियों के तेज़ाब से २० गुना कमज़ोर तेज़ाब है .मांसाहारी पशुओं की आंत की लम्बाई शरीर से सिर्फ तीन गुना लम्बी है ताकि खराब मांस जल्दी शरीर से बाहर निकल सके ।
मनुष्य की आँतों की लम्बाई शरीर से १०-१२ गुना ज्यादा है .क्षारीय लार है जिसमे ताईलीन एंजाइम है ताकि खाद्यान का पूर्ण पाचन हो सके ।
मांसाहारी पशुओं में लार अम्लीय होती .टाई -लींन एंजाइम नदारद रहता है ताकि खाद्य का पूर्व पाचन हो सके .
रेड मीट अनेक जीवन शैली रोगों का लगातार बड़ा करान बन रहा है जिनमे कैंसर भी शामिल है .
गुरुवार, 27 जनवरी 2011
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