शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

यकसां है बायो -रिदम समुद्री एल्गी और मनुष्यों में ...

हमारे जीवन की बुनियादी इकाई कोशिका /कोशा /सेल से लेकर जीवन के प्राचीनतम स्वरूपों में बायो -रिदम यकसां है .एक भारतीय मूल के साइंसदान ने जो केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शोधरत है उस प्राविधि का पता लगाया है जो इस चौबीस घंटा के चक्र का विनियमन करती है .यह सर्कादिया रिदम /जैव घडी जो चुबीस घंटों की गतिविधियों का संचालन करती है क्या ह्यूमेन सेल और क्या मेरीन एल्गी दोनों में एक समान काम करती है ।

अखिलेश रेड्डी साहिब की यह रिसर्च उन स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों पर एक नै दृष्टि से देखने का रास्ता खोलती है जिनके मूल में इस जैव घडी का असंतुलित हो जाना है .विच्छिन्न हो जाना है काम के नित बदलते घंटों और दे -नाईट शिफ्ट की जल्दी जल्दी अदला बदली से .जिससे अकसर ही शिफ्ट वर्कर्स और पायलट्स दल के सदस्यों को दो चार होना पडता है .पृथ्वी पर जीवन के शुरूआती दौर से यही जैव घडी जीव रूपों की दैनिक गतिविधियों को चलाती आई है ।

न सिर्फ दैनिक और सीजनल (मौसमी )गतिविधियों के पैट्रंस का यहीं जैव घडी निर्धारण करती है ,स्लीप साइकिल (निद्रा से ) से लेकर बटरफ्लाई - माईग्रेशन तक

का यही जैव घडी निर्धारण करती है ।

एक अध्ययन में पहली मर्तबा ह्यूमेन रेड ब्लड सेल्स की २४ घंटा आंतरिक घडी की पड़ताल की गई है दूसरे में मेरीन एल्गी की इन्टरनल क्लोक का जायज़ा लिया गया है .दोनों में बला का साम्य है ।

सन्दर्भ -सामिग्री :बॉडी क्लोक इज सिमिलर इन ह्युमेंस ,एल्गी .(डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नै -दिल्ली ,जनवरी २८ ,२०१११ ,पृष्ठ २१ ).

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