रविवार, 3 अक्तूबर 2010

कैसे शुरू हुआ "हाथ मिलाने "का चलन ?

ठीक ठीक तो बताना मुमकिन नहीं ही होगा .अलबत्ता कयास लगाया जा सकता है .और कयास लगाने में कोई हर्ज़ भी नहीं है .लग गया तो तीर नहीं तो तुक्का तो है ही ।
अपनी किताब "दी प्रिन्सिपिल्स ऑफ़ सोशियोलोजी "में हर्बर्ट स्पेंसर एक किस्सा बयान करतें हैं .एक मर्तबा दो अरब वासी रेगिस्तान में मिले दोनों ने परस्पर एक दूसरे का गर्म जोशी से हाथ थामे रहने का फैसला किया .परस्पर एक दूजे के हाथों को चूमने को अपमान जनक माना समझा .पूर्व में अरबी लोग एक रस्म के तौर पर एक दूजे का हाथ चूमते थे .
मध्य युगीन योरोप में ऐसा परिश्थितियों के दवाब के चलते हुआ .जिसे नितान्त व्यावहारिक माना समझा गया .राजाओं और शूर वीरों ने फैसला किया वह निहथ्थे हैं कोई हथियार नहीं छिपायें हैं इसका यकीन पक्का करवाने के लिए हाथ मिलाने को अपना लिया गया .यानी हाथ मिलाना मित्रता का पर्याय समझा गया .यकीन दिलाई का भी हम तुम पर वार नहीं करने आयें हैं .

4 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (4/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अच्छी जानकारी मिली

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

विश्वास तो नहीं होता...लेकिन इसके अलावा फ़िलहाल कोई चारा नहीं..सो मान लेते हैं जी की यहीं से शुरू हुआ होगा.

virendra sharma ने कहा…

vandnaaji ,sangeetaa svroop geet ji ,anaamikaaji ,shukr guzaar hun aap kaa .
veerubhai .