सो ,वह नंगम -नाथों की विरासत में अपनी ओर से इजाफा कर रहा है .यह तो मानवाधिकार का एक छोटा सा पहलू है .पहलू तो और भी हैं .आतंकवादियों के मानवाधिकार हैं .सेना और पुलिस तो नौकरी में हैं .फिर आत्म -रक्षा के अधिकार काक्या मतलब ?रक्षा तो क़ानून करेगा .जान कोई क़ानून से बड़ी होती है क्या ?आतंकवादियों की बातअलग है .भले ही वह पूजा स्थलों पर हमला करते फिरें ,सैंकड़ों की जान ले लें पर उन पर गोली चलाने से पहले यह तो पूछा ही जा सकता है ,कहीं वह भारतीय नागरिक तो नहीं हैं ?बिना पूछे उनकी गोली का ज़वाब देना तो मानवाधिकारों का उल्लंघन है .सरासर अन्याय है .आखिर मानावाधिकारवादी जाएँ भी कहाँ -कहाँ !एक जान को सौ -सौ सांसत !मस्लेकई हैं .समाज में अल्प -संख्यक हैं .होने को तो बहु -संख्यक भी हैं .पर ,समाज तो अल्प -संख्यकों से चलता है न !मानावाधिकार तोउन्ही के होतें हैं न !बहु -संख्यक भी मानव होते हैं क्या ?वे तो भीड़ हैं .मानव होना होता तो अल्प -संख्यक न हो जाते !अब बहु -संख्यक होकर भी समरसता और समानता की बात करते हैं .समान नागरिक संहिता चाहते हैं .कैसी खतरनाक साज़िश है !यह तो बुर्जुआ सोच है .देश को बांटना चाहते हैं .आखिर समरसता और समानता का क्या औचित्य है ?अल्प -संख्यक ,अल्प -संख्यक हैं और बहु -संख्यक ,बहु -संख्यक हैं .द्वंद्वात्मक संघर्ष तो ज़रूरी है न !संघर्ष ही रुक गया तो समाज तरक्की कैसे करेगा ?समाज तरक्की करता रहे ,इसकी चिंता तो मानवाधिकार - वादियों को करनी पडती हैं न !बराबर मानव -धिक्कार ज़ारी रहे तभी तोमानावाधिकार की बात उठेगी .बात उठेगी तो दूर तक जायेगी .मानवाधिकार का हनन ही न हो ,ऐसी व्यवस्था किस काम की ?ऐसे में मानवाधिकारवादी क्या करेगा ?लंगर से पेट भरेगा ?फिर मानवाधिकार की घुट्टी किसे पिलाएगा ?इसलिए मामला न भी हो तो भी सेंत -मेंट में बनाओ .न बने तो बनता हुआ दिखाओ .किसी एक को पीडिता सिद्ध करो !फिर उसका पीड़ा -हरण करो .पहले बलात्कृता थी ,अब तुम दैहिक साक्षात्कार करो .ऐसा लगे ,तुम मानवधिकार के सबसे बड़े पैरोकार हो.काम भले ही मानव -धिक्कार के करो पर काला कोट पहन कर बहस मानवाधिकार पर करो .चैनल पर इंटर -व्यू दो .सब सुनेंगें ,सब देखेंगे .माहौल बनेगा तोरोमांच भी पैदा होगा .फिर देखना जो नहीं भी हुआ ,वह मुद्दा बनेगा .मानवाधिकार की रक्षा के लिए तो यह ज़रूरी है .विषय ही न होगा तो इबारत कैसे लिखी जायेगी ? माल कैसे बिकेगा ?औरगर माल ही नहीं बिका तो इंसानियत को चाटोगे क्या ?ले -दे कर मानावाधिकार कामुद्दा भी हाथ से जाता रहेगा .फिर खाली बैठ कर मर्सिया पढ़ना !अधिकार और धिक्कार दोनों के परम साधक ,हे मानवाधिकार -वादी !सच - मुच तुम महा -धन्य हो !
प्रस्तुति एवं सहभाव :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010
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