इन दिनों माहिर मेमोरी बेक अप टेक्नोलजी पर कामकर रहें हैं .इन धुरंधरों में डॉक्टरेट की १७ बार मानद उपाधि हासिल कर चुके राय्मोंद कुर्ज्वेइल भी शामिल है .नेनो -रोबोट्स रक्त प्रवाह में शामिल करवा कर किसी की भी याददाशत और संवेदनाओं को दर्ज़ किया जा सकता है .याददाश्त -क्षय को थामाभी जा सकता है .यहाँ ख़तरा यह है संवेदनाओं की चोरी हो सकती है इन्हें कोई भी पढ़ सकता है .ब्रेन वाश भी कर सकता है .आखिर आदमी उस एहसास को भूलना चाहता है जिसने उसे तरसाया है .अच्छे अनुभव याद रह जातें हैं .भूलने की शिफत आदमी को ताकत देती है .दुःख दर्दों से आदमी मुक्त हो जाता है .फिर हर चीज़ छीजती है उम्र के साथ .फ़ालतू चीज़ों की खुद -बा -खुद छटनी होती चलती है ।आदमी सिर्फ याददाश्त नहीं है .याद रखना भूलना आदमियत है .भूलने से आदमी बिखरता नहीं है ,मुक्त होता है दर्दीले अनुभवों से .
ह्यूमेन -मशीन -इंटर फेस में मशीन का बेहद का दखल कहीं आदमी को रोबो बनाके ही न छोइड दे .संवेदनाएं तो पहले ही मर रहीं हैं .उन्हें ऑक्सीजन देने का फायदा ।
बेशक नेनो -बोट्स टेक्नोलोजी द्वारा मेमोरी को धार दार बनाना ,छीज़ंन याददाश्त की रोकना कई न्यूरो -डि -जेंरेटिव -डी -जीज़ का समाधान प्रस्तुत कर सकता है .लेकिन फलना फूलन मुरझाना जीवन का क्रम है उसमे दखल जीवन को ही बेमजा कर देगा .
रविवार, 24 अक्टूबर 2010
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