फिफ्थ ऑफ़ दी वर्ल्ड स्पीशीज फेसिंग एक्स -टिंक -सन :स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २८ ,२०१० ,नै दिल्ली संस्करण पृष्ठ २१ )।
एक नवीन रिसर्च ने चेताया है ,विश्व की कुल प्रजातियों का पांचवां हिस्सा विलुप्त -प्राय हो चुका है ।
साइंसदानों की अंतर -राष्ट्रीय बिरादरी ने एक भूमंडलीय खतरे की ओर इशारा करते हुए बतलाया है औसतन ५० प्रजातियाँ स्तनपाइयों ,पक्षियों ,रेप -टा -इल्स (रेंगने वाले जीवों की ),जल -थल चरों यानी उभयचरों की (एम्फीबियंस )हर साल विनाश के कगार पर पहुँच रही हैं ।
बेशक पर्बतीय गुरिल्ला की दुःख -गाथा ,दुर्दशा ,बंगाल टाइगर्स (बाघों ) की दास्ताने -दर्द के किस्से आम हो जातें हैं लेकिन इनके अलावा लाखों ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनके सामने अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है ।जिनकी चर्चा भी नहीं होती .
रेड डाटा बुक में उन प्रजातियों को जगह मिलती है जिनके लुप्त प्राय होने का ख़तरा मौजूद है .इंटर्नेशनल यूनियन फॉर दी कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर ऐसी ही प्रजातियों के आंकडें जुटाती है .इन्हीं की पड़ताल से पता चला है ,दुनियाभर के २० फीसद रीड -धारी (कशेरुकी ,वर्टिब्रेट्स)प्राणियों ,२५ फीसद स्तनपाइयों (मेमल्स ),१३ फीसद पक्षियों तथा २२% रेप -टा-इल्स (सरी-सृपों ),४१ फीसद उभय -चरों के आगे आज अस्तित्व का विकत संकट पैदा हो चुका है .
गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010
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2 टिप्पणियां:
भारत में बढ़ती जनसंख्या इसके लिये जिम्मेदार है.
यह तो बहुत चिंताजनक बात है।
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