व्यंग्यकार :डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,शब्दालोक -१२१८ सेक्टर -४ ,अर्बन एस्टेट ,गुरगांव -१२२-००१ ।
आमंत्रित लेखों की कड़ी का एक संग्रहणीय व्यंग्य -लेख ।
वह मानवाधिकार -वादी है और वह भी भारत का .मानावाधिकार बाहर के हैं और वादी घर का है .अब चिंता किस बात की ?जब चाहे घर के मोहरे को पिटवा सकता है .घर की बातघर में ही रहे यह कूप मंडूकता है .परले दर्जे की संकीर्णता है .इससे मुक्त होना होगा .चौधर हमेशा बाहर की अच्छी .यही तो जय -चंद और मीरजाफर ने किया था .बाहर की चौधर को दावत दी थी .इसलिए तो वह इतिहास पुरुष हैं .साम्प्रदायिक लोग इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर रहें हैं .साफ़ चरित्र हीनता का मामला बनता हैं .इतिहास पुरुषों की श्रृंखला में गुरु तेगबहादुर और शिवाजी का नाम .ऐसी हिमाकत !हमारे अंगना में तुम्हारा क्या काम है ?अंगना जब हमारा है तो मर्जी भी हमारी है .हम चाहे नाचें ,चाहे नंगे हों .तुम कौन होते हो ठुमका लगाने वाले ?एक तो चंद लोगों के गुरु -वुरु थे और दूसरे शिवानी के पूजक थे .दोनों साम्प्रदायिक थे ,और दुस्साहस इतना इतिहास श्रृंखला श्रृंखला में स्थान चाहते हैं .कैसा सितम है !यह अन्याय तो हम न होने देंगें .इतना भी नहीं जानते ,श्रृंखला तो मानवाधिकार -वादियों की होती है ,लाल सलामी देने वालों की होती है .विश्वास न हो तो आसफअली रोड और बहादुरशाह जफर मार्ग के आसपास देख लीजिये .हाथ कंगन को आरसी क्या ?सब जगह मानव श्रृंखलाएं बन रहीं हैं .मानवाधिकार के हक़ में हाथ में हाथ पकडे बौद्धिक गुलाम चल रहें हैं .कर्ण भेदी नारे उछल रहें हैं .कमसे कम अपने आकाओं के कानों तक तो आवाज़ पहुंचनी ही चाहिए .फिर मीडिया वाले भी तो हैं .वरना क्या फायदा ?आका खुश न होंगें तो पर्दा न उठ जाएगा !फिर पापी पेट का भी तो सवाल है न !जब केंद्र ही कमज़ोर हो तो बाकी प्रदेश क्या कर लेंगें ?पेट भरा रहेगा तो केंद्र भी मजबूत होगा .अन्यथा लोकतंत्र कमज़ोर न पड़ जाएगा ।
पता नहीं हम भारतीय कब चेतेंगें .एक तो बेरोज़गारी ,तिस पर उद्योग -धंधे भी मंदी चल रहें हैं .ऐसे में मानवाधिकार यदि फल फूल रहा है तो प्रगति विरोधियों का जी हलकान क्यों हो रहा है ?दरअसल साम्प्रदायिक चाह्तेही नहीं ,देश उन्नति करे .उन्नति करे भी तो कैसे ,इस देश में ढंग से मानवाधिकारों की रक्षा तक तो होती नहीं और उधर विदेशों में तो न जाने किस -किस अधिकार की रक्षा हो रही है .सब के सभी अधिकार सुरक्षित हैं .नंगा होने का पैदायशी हक़ है .निर्बंध अधिकार है .पर्दा बे -पर्दा दोनों एक -से हैं .कहीं कोई नेपथ्य नहीं .नुक्कड़ नाटक है .खुला रंग मंच है .पर भारत में इस पैदाइशी मानवाधिकार पर भीकुछ लोग हल्ला मचातें हैं .यह सब फासिस्ट हैं .कला पर बंदिश लगाते हैं .लोकतंत्र का गला घोंटतें हैं .यह तो भला हो उन नामवर महाभट्ट -ओं का जो फिल्म क्षेत्र क्षेत्रमे ही सही अभिव्यक्ति की आज़ादी की मशाल थामे हुए हैं .खुद कब्र की और बढ़ रहे हैं पर पैदाइशी मानवाधिकार की रक्षा के लिए जी -जान एक किये हुए हैं .आखिर ऐसा क्या करंगें क्यों न ?जिस्म अपना है ,जिस्म पर अधिकार भी अपना है.मानावाधिकार का यही तो पहला पाठ है .व्यक्ति भी स्वतन्त्र और अभिव्यक्ति भी स्व -तंत्र .मानावाधिकारों का यह कैसा भव्य कलात्मक बोध है .नंगम नाथों की कैसी शानदार विरासत है !!(ज़ारी ....)
शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010
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