डेमोक्रेसीज़ वे .दी नीद टू प्रोटेक्ट फ्री स्पीच (दूसरा सम्पादकीय ,टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २८ अंक ),हाल्फ स्टोरीज़, हाल्फ ट्रू-थस.दी मासिज़ नीड टू नो एनादर कश्मीर नारेटिव हेक्लार्स ,मूव एसाइड(आलेख ,हिन्दुस्तान टाइम्स ,अक्टूबर २८ ,२०१० )।
उक्त सम्पादकीय तथा आलेख की अनुगूंज हमारे दिलो -दिमाग पर अभी बाकी है .इसी को आपके साथ सांझा कर रहा हूँ ?
आज़ादी की (अभि- व्यक्ति की आज़ादी तो सबको मिली ही हुई है ) मांग इनदिनों रक्त रंगी बराबर कर रहें हैं .पूछा जा सकता है -कैसी आजादी चाहिए इन्हें ?
'छत्तीस सिंघपुरा में सिखों को कतार में खड़ा करके ज़िबह करने की आज़ादी या हिन्दुओं को घाटी से बेदखल करने की आज़ादी जिसका पहले ही भरपूर उपयोग हो चुका है ।
मज़हबी कट्टरता (मध्य -कालीन )क्या आज़ादी है ?भारत सरकार क्या हाथ पे हाथ धरे बैठी रहे ?प्रधान मंत्री देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलामानों का बतलाते रहें .ऑस्ट्रेलिया में पकडे गए एक डॉ .की गिरफ्तारी पर जिसपर आतंकी होने का शक था ,रात भर बे -चैनी में करवटें बदालतें रहें ?।
इसके बावजूद भारत सरकार को चंद पत्रकार थिन-स्किंड कहते समझते रहें .यानी तौहीन आपकी होती रहे ,आपकी बे -सिर -पैर की आलोचना होती रहे ,आप खामोश रहें ।
पूछा यह भी जा सकता है -'क्या भारत सरकार को थिक -स्किंड होना चाहिए (गेंडे की खाल वाला )'?
हमारा यह भी मानना है जो कुछ कश्मीर में कहा जा रहा है वह वहां भी गलत है .किसने कह दिया ,वह सही है ?सम्पादकीय में यह कैसे मान लिया गया ,कश्मीर में कहा गया प्रलाप सही है .वह वहां भी गलत है ,दिल्ली में भी .कश्मीर सेमीनार ,कश्मीर विमर्श के नाम पर रक्त -रंगी कैसा फसाद करना चाहतें हैं ?
हिन्दुस्तान टाइम्स में अग्र- लेख लिखने वाले महाशय प्रदीप मैगज़ीन से पूछा जा सकता है .आपको वह जूता दिखलाई नहीं दिया जो जिलानी साहिब की ओर फैंका गया .सौभाग्य जूते का उन्हें लगा नहीं वरना जूता भी ना -पाक हो जाता ।आप कहना चाह रहें हैं,अरुंधती घाटी से बेदखल किये गए हिन्दुओं के हक़ हुकूक की बात कर रहीं थीं .
क्या मार्क्स- वाद की बौद्धिक गुलामी करना आज़ादी है ?अरुंधती ओर इतर रक्त -रंगी लेफ्टियों से पूछा जा सकता है .भारत को गाली देने से अब दूसरा बुकर नहीं मिलेगा .काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती है ।
सम्पादकीय लिखने वालों को हम बत्लादें हमारा राजनीतिक तंत्र बोदा नहीं है .हमने पहले भी मुकाबला किया है .खालिस्तान ,बोडो -लैंड ,गोरखा -लैंड जैसे आन्दोलनों की आग को बारहा हमने बुझाया है ।
आन्दोलन दक्षिण से भी उठते रहें हैं लेकिन द्रविण आन्दोलन के सूत्र धार हिन्दुस्तान की मुख्य धारा में एक स्थान चाहते थे,हिन्दुस्तान से अलगाव नहीं . .कश्मीर की लड़ाई धर्मांध लोगों की लड़ाई है .इससे उस तरह से नहीं निपटा जा सकता .हिन्दुओं को घाटी से निकलने वाली दृष्टि अलग है .क्या कश्मीर हिन्दुस्तान में नहीं है ?औरयदि है तो आज़ादी किसको किससे चाहिए ?
गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010
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