भारत में तकरीबन दस लाख मामले ब्रेन -अटेक के सामने आतें हैं जिनमे से १०२,००० चल बसतें हैं .दुर्भाग्य यह भी है 'स्ट्रोक '(मस्तिष्क आघात या सेरीब्रल -वैस्क्युलर -एक्सिडेन्ट्स ) के लगभग उतने ही मामले सामने आतें हैं जितने की हार्ट अटेक (दिल के दौरे )के लेकिन अकसर इस के लक्षणों की शिनाख्त में आम जन से चूक हो जाती है और नतीजा जान लेवा भी सिद्ध हो सकता है ।
जबकि फिलवक्त एंटी -प्लेटलेट ट्रीट -मेंट्स के अलावा ,क्लोट बस्टर्स नए से नए (थक्का घोलने वाली दवाएं ),इंट्रा -आर्टीरियल 'आर टी पी ए इन्जेक्संस 'थक्के के स्थान पर लगा दिए जाते हैं .'पेनुम्ब्रा 'जैसी यांत्रिक -प्राविधियाँ (मिकेनिकल डि -वाइसिज़) भी आ गईं हैं फिरभी रोग के बारे में जानकारी और इलाज़ के बारे में इत्तल्ला उतनी नहीं है .आइये पहले जाने क्या है 'स्ट्रोक 'या आघात (मस्तिस्क आघात )?
आम भाषा में इसे दिमागी दौरा या फिर ब्रेन -अटेक भी कह दिया जाता है .इसमें दिमाग को खून मुहैया करवाने वाली ब्लड वेसिल्स (नालियां ,रक्त -वाहिकाएं )अवरुद्ध हो जाती हैं .दिमाग तक खून नहीं पहुँच पाता है .नतीज़न दिमागी कोशायें ऑक्सीजन के अभाव में मरने लगतीं हैं (खून में ऑक्सीजन भी तो घुली रहती है ).
दिमाग के किस हिस्से में यह घटित हुआ है ,कितनी दिमागी कोशायें असर ग्रस्त हुईं हैं उसी के अनुरूप कुछ ख़ास काम जो शरीर सामान्यतया करता रहता है प्रभावित होतें हैं .मसलन बोल -चाल (संभाषण या स्पीच ),शरीर के अंगों का संचालन (मूवमेंट ,मोटर एक्शन ),याददाश्त आदि .सब कुछ इस पर निर्भर करता है दिमाग का दायाँ हिस्सा असर ग्रस्त हुआ है या बायाँ ।
क्या है इसके आम लक्षण ?
(१)अचेतन हो जाना यानी लोस ऑफ़ कोंशश- नेस (२)सुन्नी (नंब -नेस )एंड वीकनेस इन दी फेस ,आर्म आर लेग .(३)संभ्रम (गफलत या कन्फ्यूज़न )(४)बोलने और कुछ भी समझ पाने में परेशानी(५)बीनाई में दिक्कत ,प्रोब्लेम्स इन विज़न ,(६)घुमेर या चक्कर आना यानी डिज़ी -नेस (७)लोस ऑफ़ बेलेंस एंड कोर्डिनेशन ,डगमगाना ,संतुलन कायम न रख पाना .(८)सर -दर्द और वमन यानी उलटी आना ।
असर ग्रस्त व्यक्ति से हंसने को कहिये देखिये क्या चेहरे का एक हिस्सा ड्रुप करता है .मरीज़ को दोनों बाजू रेज़ करने को कहिये .क्या एक बाजू नीचे को झुक जाता है .बार -बार एक ही वाक्य बुलवाइए मरीज़ से क्या वह साफ़ बोल पा रहा है या सिलेबिल्स अस्पष्ट हैं .स्पीच स्लर्द है .इनमे से किन्हीं भी सिम्पटम्स का मौजूद रहना होना न्युरोलोजिकल इमरजेंसी है आपद काल है ।
याद रखिये ,टाइम इज गोल्ड ,एक -एक पल कीमती है .तकरीबन दिमाग की १९ लाख कोशायें (न्युरोंस ,दिमाग की एकल कोशा को ही न्यूरोन कहतें हैं )स्ट्रोक के दौरान एक मिनिट में मर जाती हैं .चार से साढ़े चार घंटे का समय बेहद कीमती है जीवन और मृत्यु इसी के बीच तय हो जानी है ले देकर इसे ६ घंटे तक बढाया जा सकता है .आदर्श स्थिति तो यह है मरीज़ को स्ट्रोक के बाद पहले तीन घंटों में ही माहिरों की चिकित्सा मिल जाए .इसके बाद मरीज़ के जीवन की गुणवत्ता के साथ समझौता करना पड़ सकता है ,इलाज़ मिलने पर भी ।
भ्रस्ट जीवन शैली के चलते अब स्ट्रोक की औसत उम्र तेज़ी से घटरही है .लेट थर्तीज़ का छोडिये मैंने खुद एक स्ट्रोक के युवा विक्टिम (३० )की तामार्दारी की है .बारहा उसे न्यूरोलोजिस्ट के पास रिव्यू के लिए ले जाता रहा हूँ .६ माह हो चुके इलाज़ अभी भी ज़ारी है .महिलायें भी अब इसकी जद में आ रहीं हैं .
शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010
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