शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

बहुत धीरे -धीरे ही बढ़ता है इसीलिए शिनाख्त हो भी सकती है अग्नाशय -कैंसर की .

पेन -क्रिए -टिक कैंसर ग्रोज़ स्लोली ,कैन बी डि -टेक -टिड अर्ली (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २९,२०१० )।
अग्नाशय का कैंसर बहुत धीरे -धीरे बढ़ता है इसीलिए इसे पनपने में सालों से लेकर दशकों तक का समय लग सकता है ,इस अन्वेषण से ही यह भी पता चला है जल्दी रोग -निदान के बाद जल्दी ही इस जान -लेवा बेहद के खतरनाक किस्म कैंसर से छुटकारा भी मिल सकता है ,पुख्ता इलाज़ हो सकता है समय से इसका ।फिलवक्त
इस खतरनाक किस्म के कैंसर से रोग निदान के पांच सालों के अन्दर ही इसके ९५ %पीड़ित मर जातें हैं .साइंसदानों ने इस किस्म के ट्यूमर की आनुवंशिक -पुरातात्विक पड़ताल की है .
बेशक यह ट्यूमर जंगल की आग की तरह तेज़ी से नहीं फैलता बढ़ता है लेकिन इसकी कछुवा चाल के चलते ही जब तक रोग -के लक्षण प्रकट होतें हैं बहुत नुक्सान हो चुका होता है ,रोग बेहद बढ़ चुका होता है .कई चरण पार कर आखिरी की ओर बढ़ चुका होता हाई .शुरूआती बीस सालों में ही इसकी पड़ताल हो जाए तो इसकी मार से आदमी बच जाए ।
जोहन्स होपकिंस यूनिवर्सिटी ,बाल्टीमोर के रिसर्चरों ने इस अध्ययन को आगे बढाया है .बकौल उनके इसी अवधि में इसकी पड़ताल भी हो सकती है .पड़ताल के बाद सर्जरी कारगर भी हो सकती है ,शर्तिया तौर पर ।
रिसर्चरों ने अपने अध्ययन के लिए मरीज़ की इस कैंसर से मौत होते ही टिश्यु सेम्पिल शव -परीक्षण के दौरान जुटाएं हैं .तीन ऐसे मरीजों से भी नमूने जुटाए गए जिनकी जान बचाने के लिए ट्यूमर को सर्जरी करके निकाल दिया गया था ।
ट्यूमर्स में होने वाले म्युटेसंस का स्तेमाल रिसर्चरों ने एक आणविक -घड़ी के रूप में किया .इससे ट्यूमर्स के विकासकी टोहलेने में मदद मिली है .वास्तव में डी एन ए में होने वाले उत्परिवर्तन एक ख़ास दर से होतें हैं इनका आकलन किया जा सकता है .साइंसदानों को पहले से ही यह खबर थी अग्नाशय कैंसर में कौन से उत्परिवर्तन संपन्न होतें हैं .विज्ञान पत्रिका (साप्ताहिक )'नेचर 'में इस स्टडी का पूरा ब्योरा छपा है .

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