सशुक्ल समाचार यानी पेड़ न्यू -ज क्या हैं ?
यह विज्ञापन और सही खबर के बीच की विधा है जो नेताओं को बहुत रास आती है । यह खबर के आवरण में एक प्रकार का विज्ञापन है .अंग्रेजी में हम इसे " पैड न्यूज़ " कहतें हैं ।अखबार और पत्र पत्र-पत्रिकाओं ,इलेक्ट्रोनिक मीडिया में सशुल्क आलेख ,वार्ताएं भुगतान करने वाले के अनुकूल माहौल रच्तें हैं .सशुल्क समाचारों का फायदा उठाने वाले कुछ संस्थान भी हो सकतें हैं ,राजनीतिक दल भी .दरअसल यह सशुल्क समाचार छदम विज्ञापन ही होतें हैं ,पैसा दो और खबर छपवाओ ।आर्टिकिल का मुखौटा लिए होतें हैं यह आलेख आप चाहें तो इन्हें "एडवरतोरीअल " भी कह सकतें हैं . होते भी यह एडवर्टोरियल ही हैं .जनता -जनार्दन को बरगलाने गलत फीडबेक देते हैं यह तमाम आलेख और वार्ताएं .धोखा धडी है यह जनता के साथ रीडर्स और व्यूअर्स के साथ ।
इन आर्तिकिल्स की एवज विस्तृत मीडिया को किया गया भुगतान एक तरफ टेक्स -चोरी है ,दूसरी तरफ पार्टी -खर्चों में भी इन्हें शुमार नहीं किया जाता .मत -दाताओं के लिए यह घोर चिंता का विषय है .मीडिया खुद एक पार्टी विशेष का पक्षधर बन मत -दाताओं ,कर -दाताओं को प्रभावित करता है .सशुल्क समाचार और आलेखों की लीला अपरम्पार है .संसद में पूछे जाने वाले सवाल सशुल्क न्यू -ज का विकृत चेहरा प्रस्तुत करतें हैं . इसी स्थिति पर कटाक्ष करती कुछ पंक्तियाँ हैं मेरेमित्र और सहयोगी रहे डॉ नन्द लाल मेहता वागीश की -
नहीं पूज्य कोई आलंबन ,फिर भी इतने हैं वंदी -जन ,
देखा अजब तमाशा यारों ,पूरा शहर ढ- इन -ढोर- ची ,
शब्द ढोल के हुए मिरासी ,पूरा शहर dhin-ढोर -ची .
सोमवार, 25 अक्तूबर 2010
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