क्या है "डेटिंग "?
जब आप किसी से मिलने का वायदा करतें हैं ,वायदा लेतें हैं तो इसे डेटिंग कहतें हैं .लेकिन डेटिंग का स्तेमाल पुरातात्विक और इतिहासिक महत्त्व की सामिग्री ,खुदाई में निकले अवशेषों का काल निर्धारण करने के लिए भी किया जाता है .इसे वास्तव में "रेडियो -मीट्रिक -डेटिंग "कहतें हैं ।
रेडियो -कार्बन डेटिंग ,पोटे -सियम आर्गन डेटिंग ,युरेनियम लेड डेटिंग सभी रेडियो -मीट्रिक डेटिंग के तहत आयेंगें .
युरेनियम -लेड डेटिंग :काल निर्धारण की इस विधि में रेडियो -एक्टिव -युरेनियम की नियत विखंडन दर (कोंस्तेंट डीके या कोंस्तेंट रेट ऑफ़ रेडियो -एक्टिव दिस -इंटीग्रेशन का सहारा लिया जाता है .युरेनियम बहुल लवण में मौजूद य्रेनियम एटम(वास्तव में युरेनियम नाभिक )एक सुनिश्चित रफ्तार से पल प्रति पल टूटते जातें हैं .यह टूटने की दर ना कम हो सकती है किसी भी विध ना ज्यादा .यह एक इन -बिल्ट घडी है रेडियो -धर्मी युरेनियम के पास .अंतिम उत्पाद के रूप मेसदैव ही लेड बचता है .बस इसकी मात्रा का सही जायजा लेकर युरेनियम बहुल लवण /चट्टान आदि की उम्र का आकलन कर लिया जाता है .हम जानतें हैं तमाम रेडियो -धर्मी पदार्थों के अन्दर एटोमिक एक्स्प्लोज़न आपसे आप बिना किसी की ट्रिगर के होते रहते हैं .अल्फा ,बीटा या गामा रेज़ इस विस्फोट के फलस्वरूप पैदा होतें रहतें हैं .उप -उत्पाद तो मिलता ही है एंड प्रोडक्ट के रूप में ॥
रेडियो -कार्बन डेटिंग का स्तेमाल उस सामिग्री के काल निर्धारण में किया जाता है जो कभी जीवित थी .ओरगेनिक नेचर की है .जैसे बाबरी मस्जिद में प्रयुक्त लकड़ी आदि .ईशा का ट्यूरिन में रखा हुआ कफन भी इसी केटेगरी में आयेगा .
कार्बन -१४और कार्बन -१२ दोनों के एटम जीवित सामिग्री में मौजूद रहतें हैं .दोनों का अनुपात ओर्गेनिज्म के जीवित रहते नियत (कोंस्तेंट )बना रहता है .लेकिन मिकेनिज्म (ओर्गेनिज्म )की डेथ (मृत्यु के बाद )कार्बन -१४ /कार्बन -१२ अनुपात एक ख़ास दर से घटता चला जाता है .कार्बन -१४ की हाल्फ लाइफ के हिसाब से यह छीजना एक ख़ास दर बनाये रहता है .बस इस अनुपात की जानकारी और कार्बन -१४ की अर्द्ध -आयु (हाल्फ लाइफ )का इल्म उस पुरातात्विक महत्व के दस्तावेज़ की उम्र का जायजा ले लेता है जिसका काल निर्धारण वांछित है .पोटेशियम बहुल चट्टानों के काल निर्धारण में पोटेशियम /आर्गन अनुपात निकाला जाता है .रेडियो -पोटेशियम की हाल्फ लाइफ की ज़रुरत पडती है .हीलियम क्लोक चट्टानों की दरारों में फंसी हीलियम का जायजा लेती है .त्री -रिंग्स भी काल निर्धारण का आधार बनतें हैं .रिंग्स को गिनकर वृक्ष की उम्र का कयास लगाया जाता है .समुन्दर के नीचे लाल चट्टानों की पर्त की साल दर साल बढती मोटाई ,नमक का सांद्रण भी एक घडी का काम करता है .
रविवार, 3 अक्तूबर 2010
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