"लव इज किर्येतिद एट फस्ट साईट "लेकिन प्रेम पलता पनपता कहाँ हैं दिल में या दिमाग में या दिल -ओ -दिमाग दोनों पे बरपा होता है ?साइंसदानों के मुताबिक़ एक प्रोटीन का अणु हैजो प्रथम दर्शन के प्रेम को परवान चढ़ाता है और बस कोई गा उठता है ,'मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का ,अफ़साना मेरा बन गया ,अफ़साना किसी का .'और यह भी चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है पहली मुलाक़ात है, जी, पहली मुलाक़ात है '.इस प्रोटीन का नाम है 'नर्व ग्रोथ फेक्टर 'दिमागी कोशाओं (ब्रेन सेल्स ,यानी न्युरोंस ) को बनाये रखने में इस प्रोटीन का बड़ा हाथ होता है .
आखिर दो व्यक्तियों के बीच में केमिस्ट्री होती ही क्यों है ?क्या वजह बनती है इस सोसल केमिस्ट्री की यह राज विज्ञानियों ने आंज ही लिया है .फिर प्रेम और प्रेम के आवेग में अंतर होता है .किसी का प्रेम अथाह ,प्रगाढ़ होता है ,तो किसी का प्रेम होता भर है आवेग उतना नहीं रहता है .क्यों ?
सेक्स्युअल मेडिसन में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक़ दिमाग के अलग अलग हिस्से प्रेम की प्रगाढ़ता के अनुरूप सक्रीय होते हैं रोशन होते हैं एक्टिवेट होते हैं .रूमानी प्रेम में दिमाग के डोपा -मिनर -जिक -सब्कोर्तिकल तंत्र में प्रिय पात्र को देखते ही सक्रियता बढ़ जाती है ।
'दिल तुझे दिया था रखने को तूने दिल को जलाके रख दिया ,किस्मत ने देकर प्यार मुझे मेरा दिल तडफा के रख दिया ' के साथ अब दिमाग की भी चिंता कीजिये ।
'जब दिल ही टूट गया 'के आगे दिमाग की सोचिये .स्य्राचुसे विश्वविद्यालय के रिसर्चरों के मुताबिक़ प्रेम दिल और दिमाग दोनों से किया जाता है दोनों की भागेदारी होती है प्रेम में ।
साइंसदानों के मुताबिक़ जब आप अपने प्रियतम को देखते हैं तब एक साथ दिमाग के १२ हिस्से मिलके काम करने लगते हैं ।
'सत्य ही रहता नहीं यह ध्यान तुम कविता कुसुम या कामिनी हो 'दिल -ओ -दिमाग दोनों से रीझते हैं आप .एक सेकिंड के पांचवें हिस्से में हो जाता है प्यार (लव एत फस्ट साईट इसे ही कहा जाता है ).कोई प्रेम करने निकलता नहीं है प्रेम बस हो जाता है ।
डोपामिन ,ऑक्सीटोसिन,एड्रीनेलिन और वैसो -प्रेसिं का सैलाब होने लगता है "उन "का दीदार होते ही .प्रेमोन्माद ,प्रेमातिरेक ,आनंदानुभूति ,सुखानुभूति यही दिमागी रसायन करवाते हैं .इन्ही का सारा खेला है जिसे हम प्रेम कहतें हैं .दिमाग में ही उपजता है प्रेम ,बदनाम दिल होता है .
गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010
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1 टिप्पणी:
जिस घर का पता लिये घुमते थे वह घर बंद निकला।
दिल नाहक हुआ बदनाम, दिमाग बदमाश निकला॥
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