एक अध्ययन के मुताबिक़ जो लोग दीर्घावधि तक एस्पिरिन की "लो डोज़ "लेते रहतें हैं उनके लिए कोलो -रेक्टल के जोखिम का वजन एक चौथाई तथा इससे मौत के खतरे का वजन घटकर एकतिहाई ही रह जाता है ।
विज्ञान पत्रिका लांसेट में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है .आप जानते हैं एस्पिरिन की अपेक्षाकृत कमतर मात्रा उन लोगों को चिकित्सक बराबर तजवीज़ कर रहें हैं जिन्हें दिल के दौरे तथा आघात (सेरिब्रल वैस्क्युलर स्ट्रोक ) का ख़तरा बना रहता है ।
इसी प्रकार से एस्पिरिन की ज्यादा मात्रा कोलन (बड़ी आंत) तथा रेक्टम (जहां मल ज़मा रहता है ,निकासी से पूर्व )के कैंसरों से बचाव में कारगर पाई गई है ।
बेशक अध्ययनों से यह भी पुष्ट हुआ है एस्पिरिन की बड़ी खुराकें रक्त स्राव की वजहभी बनती हैं।
एस्पिरिन का हृद -सम्वाह्कीय असर (कार्डियो -वैस्क्युलर इम्पेक्ट )का पता लगाने के लिए रिसर्चरों ने चार अलग अलग अध्ययनों की पड़ताल की है .एस्पिरिन लेने वालों के लिए बिला शक कैंसर केखतरे का वजन २४ % तथा इससे मौत का जोखिम ३५ % कम हुआ .आखिरी नतीजा अवांछित प्रभावों के ऊपर लाभ को तरजीह देता नजर आया है .
रविवार, 24 अक्टूबर 2010
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