गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

गुज़रे ज़माने की बाट होके रह जायेंगें चश्मे नजर के .

लेज़र शल्य का दायरा अब निकट दृष्टि (शोर्ट -शाईतिद नेस )दोष से आगे निकल कर प्रेस्बायोपिया और दूरदृष्टि दोष तक विस्तृत हो गया है .उम्र दराज़ लोगों का रोग है प्रेस्बायोपिया जिसमे आँखको सामान्य दूरी से पुस्तक को पढने में तकलीफ होती है .यह दूरी है एक फूट या २५ सेंटी -मीटर जिसे नोर्मल डिस्टेंस ऑफ़ डिस -टिंक्त विज़न भी कहाजाता है .दर असल इस स्थिति में आँख अपने फोकस को कम ज्यादा नहीं कर पाती है .खासकर पास की चीज़ों को देखने की क्षमता छीजने लगती है .ऐसे में आँख अपना कर्वेचर (लेंस की गोलाई ,घुमाव )नहीं बढा पाती है ।
आई लेंस की इलास्टिसिटी भी कम रह जाती है .यही है प्रेस्बायोपिया ।
लेज़र सर्जरी का स्तेमाल एक दिन रीडिंग ग्लासिज़ को भी गैर -ज़रूरी बना सकता है .इतनी संभावनाएं छिपीं हैं लेज़र सर्जरी में .आँख का लेंस जैसे जैसे कठोर पड़ता जाता है as the stiffening ऑफ़ the eye लेंस takes place zooming in on close objects gets more and more difficult ।
The laser technique re- engineers the eye ball either by cutting slits ,into which tiny lenses can be fitted or by altering the shape ऑफ़ its outer layer .

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