रविवार, 31 अक्तूबर 2010

'भारत को आज़ाद होने दीजिये 'अग्र लेख पर द्रुत टिपण्णी .

भारत को आज़ाद होने दीजिये /ज़िन्दगी नामा ,एन बी टी /सन्डे नवभारत टाइम्स, ३१ अक्टूबर ,२०१० ,में संजय खाती.
। हम अपने तमाम ब्लोगार्थियों से निवेदन करेंगे ,संजय खाती साहिब का यह अग्र लेख ज़रूर पढ़ें और अपनी प्रति -क्रिया ज़रूर देवें ।
बहरसूरत हमें सिर्फ यह कहना है -'चुके हुए लोगों से बदतर हैं वह लोग जो बिक चुकें हैं .भारत को मंदमति बालक से उतना ख़तरा नहीं है जितना विकृत मति से है ।
चीन के कसीदे काढ़े हैं खाती ने इस लेख में .उत्तरी सड़क मार्ग को खोलने की दुहाई देकर वह क्या सिद्ध करना चाहतें हैं .भारत की सीमाएं एक बार १९४७ -४८ में खोली गईं थीं ,कबीलाई और इर्रेग्युलार्स घुस आये थे ।

'भारत को आज़ाद होने दीजिये '
किसने कैद कर रखा है भारत को ?खाती पहले अपने घर के दरवाज़े खोलें .अर्थ -व्यवस्था का ढोल मनमोहन और आहलुवालिया क्या कम पीट रहें हैं .संजय लेफ्टियों ,रक्त -रंगियों सा सुलूक कर रहें हैं एन बी टी के पाठकों के साथ .

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