टेस्ट रिसेप्टर्स इन लंग्स होल्ड्स की तू एस्मा (अस्थमा )क्युओर ?(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २५ ,२०१० )।
अमरीकी साइंसदानों ने स्वाद -अभिग्राहियों के हमारे फेफड़ों में भी मौजूद होने की इत्तल्ला दी है .जैसी स्वाद कलिकाएँ ,स्वाद -अभिग्राही हमारी ज़बान में होतीं हैं लंग्स में उनकी शिनाख्त होना दमे के इलाज़ को नए आयाम दे सकता है .ये अभिग्राही एयर -वेज़ के फैलाव और सिक्डाव(कोंट्रेक्सन और रिलेकसेसन )का विनियमन कर सकतें हैं ।
मेरिलैंड विश्विद्यालय के रिसर्चरों के मुताबिक़ दमा के मरीजों में यही स्मूथ मसल एयर -वेज़ या तो बेहद टाईट हो जातें हैं या फिर सिकुड़ जातें हैं .नतीजा होता है ,सांस में रुकावट ,साँय-साँय की आवाज़ (व्हीज़िंग एंड शोर्ट- ब्रीदिंग )।
ब्रोंकस को समझना होगा आगे बढ़ने से पहले .एनी वन ऑफ़ दी सिस्टम ऑफ़ ट्यूब्स व्हिच मेक अप दी मेनब्रान्चिज़ ऑफ़ दी विंड -पाइप थ्रू व्हिच एयर पासिज़ इन एंड आउट ऑफ़ दी लंग्स इस काल्ड ब्रोंकस .इसी के स्मूथ मसल्स पर कार्य -शील टेस्ट रिसेप्टर्स का मिलना एक बड़ी खबर है .ये अभी ग्राही बिलकुल स्वाद अभिग्राहियों (टेस्ट रिसेप्टर्स ऑन टंग से ही हैं ).फर्क सिर्फ इतना सा है ज़बान के अभि -ग्राहीस्वाद कलिकाओं (टेस्ट बड्स )में संग्रहित रहतें हैं , जो दिमाग को स्वाद की खबर देतें हैं ,लेकिन लंग्स में मौजूद अभिग्राही बड्स में जमा नहीं होतें हैं ,न ही दिमाग को सन्देश भेजतें हैं .अलबत्ता यह उन चीज़ों के प्रति (उन पदार्थों के प्रति )प्रतिकिरिया करतें हैं जो तीखे होतें हैं स्वाद और गंध में .बस यही यौगिक एयर -वेज़ को खोल देतें हैं .एस्मा के मरीज़ में यही एयर -वेज़ ही तो अवरुद्ध हो जातें हैं .
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें