बुधवार, 27 अक्टूबर 2010

डिमेंशिया के खतरे को दोहरा करती है स्मोकिंग .....

स्मोकिंग डबल्स दी रिस्क ऑफ़ डिमेंशिया .पफिंग टू पेक्स ए डे अप्स चान्सिज़ ऑफ़ अल्ज़ाइमर्स बाई १५७%(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २७ ,२०१० ,पृष्ठ २३ ,नै -दिल्ली संस्करण )।
जीवन सौपान के मध्यकाल (३५-४० )की उम्र में धूम्रपान की लत आइन्दा दो दशको में अल्ज़ाइमर्स तथा डिमेंशिया के खतरे का वजन दोगुना बढा सकती है .धूम्रपान से ग्रस्त लाखों लोग हर साल कैंसर तथा हृद रोगों की गिरिफ्त में आकर मर जातें हैं ।
उक्त निष्कर्ष निकालते हुए कैसर पेर्मनेंते ,ओक्लेंद (केलिफोर्निया )के साइंस दानों ने आर्काइव्स ऑफ़ इन्टरनल मेडिसन में लिखा है :सभी नस्लों में जीवन सौपान के बीचों -बीच धुआंदार ,बे -हिसाब धूम्रपान करने वाले औरत और मर्द अपने लिए अल्ज़ाऐमर्स और वेस्क्युलर डिमेंशिया का ख़तरा दोगुना बढा लेते हैं ।
रिसर्चरों के मुताबिक़ स्मोकिंग, कैंसर और हृद -रोगों की भी वजह बनती है .उम्र दराज़ होने पर यह जन जीवन को और भी ज्यादा असर ग्रस्त करती है जबकि अल्ज़ाइमर्स का ख़तरा वैसे ही बना रहता है .(बुढापे का ही तो रोग है .न्युरोलिजिकल डि -जेंरेतिव दीजीज़ अल्ज़ाइमर्स ।)
माहिरों की टीम ने एक हेल्थ प्लान के तहत जुटाए गये पचास और साठ के पेटे में आ चुके २११२३ लोगों से सम्बद्ध आंकड़ों का विश्लेषण किया है .२० सालो से भी ज्यादा अवधि तक इनके स्वास्थ्य पर नजर रखने से पता चला इनमे से २५ फीसद (५३६७ ) लोग किसी न किसी प्रकार के डिमेंशिया की चपेट में आ गए ,११३६ अल्ज़ाइमर्स की ।
बुढापे को नाकारा ,पर -आश्रित ,याददाश्त को ले उड़ने (शोर्ट टर्म मेमोरी ) वाला लाइलाज रोग अल्ज़ाइमर्स फिलवक्त दो करोड़ साठ लाख लोगों को अपनी लपेट में लिए हुए है ।
दिन भर में दो पेकिट्स से ज्यादा सिगरेट्स धुयें में उड़ाने वाले लोगों के लिए अल्ज़ाइमर्स और वैस्क्युलर डिमेंशिया का ख़तरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है .ऐसा नहीं है ,इससे कम पीने वाले पाक -सेहत रह जाते हैं ।
दो पेकिट्स से ज्यादा रोज़ धुयें में उड़ाने वालों के लिए डिमेंशिया का ११४ % तथा अल्ज़ाऐमर्स का १५७ और वैस्क्युलर डिमेंशिया का ख़तरा १७२ फीसद बढ़ जाता है ।
दिमागी स्वास्थ्य को धूम्रपान कैसे असरग्रस्त करता है इसका अध्ययन इसलिए नहीं हो सका है बे-हिसाब धूम्रपान करने वाले हेवी स्मोकर्स दूसरी रोगात्मक वजहों से पहले ही मर जातें हैं .अलबत्ता दिमाग सिगरेट के प्रति संवेदी ज़रूर है ।
विश्व -स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ पचास लाख लोग हर साल सिगरेट से पैदा दिल की बीमारियों ,दिल का दौरा और आघात (सेरिब्रल -वैस्क्युलर एक्सिदेंट्ससे मर जाते हैं .

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