शाक थिय्रेपी टू ड्राइव अवे दी ब्लूज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर १३ ,२०१० ,पृष्ठ २१ ,न्यू -देल्ही संस्करण )।
सेल फोन के आकार की एक ऐसी प्राविधि साइंसदानों ने विकसित कर ली है जिसे सोते वक्त अवसाद ग्रस्त मरीज़ के माथे से चस्पा कर दिया जाता है .इससे नींद में तो कोई खलल नहीं पड़ता लेकिन इसके दो नन्ने इलेक्ट्रोड्स से रिश्ता एक वीक करेंट (कमज़ोर विद्युत् -धारा ) आँखों के ठीक ऊपर की चमड़ी के नीचेकी नर्व्ज़(स्नायु या नसों को ) रात भर उत्तेजन प्रदान करता रहता है ।
ट्राई -जेमिनल नाम की यह नर्व दिमाग तक जाती है .इसेप्राप्त होने वाला थोड़ा सा भी विद्युत्स्पन्दं ,माइल्ड इलेक्ट्रिक चार्ज चित्त पर बड़ा अनुकूल प्रभाव डालता है .स्वास्थ्य को सुधारता है .दिस स्तिम्युलस हेज़ ए हीलिंग टच ।
न्युराल्जिया से ग्रस्त मरीजों का फेशियल पैन कम करने के लिए "ट्राई -जेमिनल नर्व स्तिम्युलेशन"काम में लिया जाता रहा है .केलिफोर्निया विश्वविद्यालय ,लासेंजीलीज़ कैम्पस ,के माहिरों ने माथे की नर्व्ज़ को इसी प्रकार उत्तेजन देने से अवसाद के खिलाफ एक कारगर अस्त्र पाया है ख़ास कर उन मरीजों पर जिन्हें अवसाद रोधी दवाएं फायदा नहीं पहुंचा अध्ययन अध्ययन हैं ।
adhayayan के अंत में अवसाद के लक्ष्णोंमें ७०% कमी देखी गई .आत्म ह्त्या का विचार काफूर हुआ .मन ज्यादा प्रसन्न और ऊर्जित आशावान दिखलाई दिया तमाम सब्जेक्ट्स का .आजमाइशों की सफलता पुख्ता करलेने के बाद आइन्दा दो तीन सालों में ही यह गेजेट अवसाद से राहत में आमजन के काम आ सकती है .
बुधवार, 13 अक्तूबर 2010
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