मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

ऐसे भी सीखता याद रखता है हमारा दिमाग .

अन -रावेल्ड :हाव दी ब्रेन स्टोर्स मेमोरीज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर ५ ,२०१० ,नै -दिल्ली संस्करण ,पृष्ठ १७ )।
औस्ट्रेलिया तथा अमरीकी साइंसदानों ने हमारा दिमाग कैसे चीज़ों को सीखता समझता याद रखता है इसकी एक अभिनव मेकेनिज्म पता लगाई है .बकौल उनके इस अन्वेषण से दिमागी चोट तथा दिमागी बीमारियों के इलाज़ में बड़ी मदद मिलेगी .न्यूरो लोजिकल दिजेंरेतिव दीजीज़िज़ (यथा अल्ज़ाइमर्स के समाधान को भी एक नै दिशा मिल सकती है ।).
सिडनी के गर्वन इंस्टिट्यूट के साइंसदान बरीस विस्सेल कहतें हैं यह अन्वेषण उस परम्परागत ढर्रे को चुनौती है जो दिमाग के काम करने सूचना को कूटांकित करनेको अब तक अपनी मुहर लगाता रहा है .इन्फार्मेशन एन्कोडिंग के और भी तरीके हैं ज़नाब यही इस अधययन अन्वेषण का क्रांतिकारी स्वर है ।
एक बुनियादी बदलाव की ओर इशारा है दिमाग के सीखने समझने याद रखने कूटंकित करने के नए तरीके का रेखांकन ।
इससे ना सिर्फ दिमाग के काम करने के बारे में हमारी सोच असर ग्रस्त हो सकती है .नै दवाओं का विकास भी नै दिशा की ओर मुड सकता है .अल्ज़ाइमर्स के रोगी के इलाज़और प्रबन्धन के प्रति भी हमारा नज़रिया बदल सकता .है ।
साइंसदानों ने अध्ययन प्रोजेक्ट के दौरान एक चूहे के दिमाग का एक ऐसा अभिग्राही (रिसेप्टर ) स्विच ऑफ़ कर दिया जिसका सम्बन्ध किसी चीज़ को पहली मर्तबा सीखने से बे -साख्ता था ।
दी रिसेप्टर वाज़ केमिकली स्विच्ड ऑफ़ .

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