शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

व्यंग्य -विडंबन :पड़ोसी का थप्पड़ .

उसने मुझे थप्पड़ मारा है .वह आदतन ऐसा करता है .इस बार तो उसने ऐसा कस के मारा है कि मेरे गाल पर उसकी उँगलियों के निशान उभर आयें हैं .मुझे उस से ऐसी उम्मीद न थी .उसने मेरे साथ विश्वास -घात किया है .उसका ऐसा करना मुझे बुरा लगा है .मैंने उस से शिकायत की तो उसने मुझे प्रमाण देने की ताकीद कर दी है .मैंने अपनी गाल पर उभरे निशानों का फोटो -प्रिंट उसे दिया है .चैनल वाले तो थप्पड़ मारने की तस्वीरें दिखाते हुए बार -बार यही कह रहे हैं कि फंस गया ना -पाक पड़ोसी !रंगे हाथों पकड़ा गया !!अब बच के कहाँ जाएगा !!!एक ही थप्पड़ मारने की क्रिया को चैनल वाले बिना रुके अंदाज़ में इस प्रकार दिखा रहे हैं जैसे पडोसी ने एक साथ कई थप्पड़ जड़ दिए हों .खैर चैनल वालों से तो मैं बाद में निपट लूंगा .उनकी कारस्तानी को मैं खूब समझता हूँ ,पर उस पड़ोसी का क्या करूँ जो कहता है कि सौपे हुए प्रमाण विश्वश्नीय नहीं हैं .उलटे उसने मुझ पर यह आरोप लगा दिया है कि उसे बदनाम करने के लिए मैंने खुद को थप्पड़ मार लिया है .मैं पशोपेश में हूँ .पर मेरी कुछ मजबूरियां हैं .मुझे वोट कि चिंता ना होती तो उसे मैं उसकी औकात बता देता .मैं अंतर -राष्ट्रीय कोर्ट में जाता .आखिर यह क्या तमाशा है ?सरे आम थप्पड़ मारने पर भी मेरा दुश्मन मुझे शर्मशार कर रहा है .वह अपनी करनी से साफ़ मुकर जाता है .यह सरासर अन्याय है .अब मैं अपना मुंह किसे दिखाऊँ ?मैं सब समझता हूँ पर सहनशीलता मेरी परंपरा है .विरासत में मिली है .फिर मैं उसकी तरह गिर भी तो नहीं सकता .मैं पड़ोस -धर्म निबाहने में विश्वास करता हूँ .मार खाकर चुप रहना कोई आसान काम है क्या ?यह विकट तपस्या है .अनेक जन्मों के बाद सिद्ध होती है .पर कुछ लोग मुझ पर ही उंगलियाँ उठाते हैं कि इसे थप्पड़ खाने कि आदत हो गई है .ये विरोधी लोग हैं .साम्प्रदायिक हैं .मुझे ही बदनाम करते हैं ।
अब पड़ोसी तो बदला नहीं जा सकता .इस पर भी विरोधी बाज़ नहीं आते .कहते हैं कि अगर पड़ोसी बदला नहीं जा सकता ,सुधारा तो जा सकता है .वे मुझे भड़काना चाहते हैं .पर मैं उनकी चाल में नहीं आऊँगा ,भले ही फिर से थप्पड़ क्यों न खाना पड़े .मैं यह भी जानता हूँ कि उसने मुझे थप्पड़ क्यों मारा है .दरअसल वह मुझसे डरता है .मेरी प्रगति और आर्थिक विकास से भय खाता है .इसलिए मैंने उसके थप्पड़ मारने को न तो तरजीह दी है और न ही टूल दिया है .यही मेरी कूटनीतिक कामयाबी है .पता नहीं कि साम्प्रदायिक लोग इस नीति को क्यों नहीं समझते ?अब देखो न ,पडोसी ने मुझ पर चोरी का इलज़ाम लगाया है .अंतर -राष्ट्रीय बिरादरी भी जानती है मैं चोर नहीं हूँ .पर मैंने मान लिया है कि मैंने चोरी की है .जब मैंने चोरी की ही नहीं तो मान लेने में क्या हर्ज़ है!इससे पडोसी भी संतुष्ट है और असली चोर भी .कम -से -कम शान्ति तो बनी रहेगी .शान्ति तो अपमान सहने की कीमत पर भी सस्ती है .फिर मान -अपमान में पड़ा भी क्या है ?यह तो विरोधी लोग हैं जो कहते हैं कि इसने नाक कटा ली है .अव्वल तो नाक कटी ही नहीं .वहीँ की वहीँ है .विश्वास न हो तो हाथ लगाके देख सकते हो .पर ,नाक अगर कट भी गई है तो प्लास्टिक सर्जरी किस दिन काम आएगी .मेरे कूटनीतिक तर्कों से पराजित हुए विरोधी लोग अब मुझ पर व्यक्तिगत आक्षेप करने लगे हैं .कहते हैं कि इसकी शक्ल खेत में खड़े बिजूका से मिलती है .इसमें मेरा क्या दोष ?मैंने जानबूझकर तो अपनी शक्ल ऐसी बनाई नहीं .जैसी मिली है, उसी से काम चला रहा हूँ .थप्पड़ खाकर भी देश की सेवा में संलग्न हूँ ।
व्यंग्यकार :डॉ .नन्द लाल मेहता 'वागीश ',शब्दालोक ,१२१८ ,सेक्टर ४ ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव
दूर -ध्वनी :०१२४ -४०७७२१८
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

3 टिप्‍पणियां:

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

Badhiya hai ji.........

Sunil Kumar ने कहा…

व्यंग का सहारा लेकर अपने बात कहना वह भी दिल की ,क्या बात है बधाई तो कम है ....

virendra sharma ने कहा…

virendr singh chauhaan sahib,sunil kumarji ,hamaari khushnasibi aapne vyangay -vidamban ko saraahaa .
shukriyaa .veerubhai