गुरुवार, 5 अगस्त 2010

एनिमल्स टू मेक इमोशनल चोइसिस (साईं -टेक ,मुंबई मिरर ,अगस्त ५ २०१० ,पृष्ठ २२ )।
प्रेम क्रोध भय आदि मनोभावों की अभिव्यक्ति ही नहीं कई मर्तबा वास्तविक जीवन स्थितियों से दो चार होते हुए भी पशु अपने चित्त -क्षोभ से ,संवेगात्मक ,आवेग और भावना से संचालित होकर चयन करतें हैं ।
ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ क्लिनिकल वेटेरिनरी साइंस तथा लिंकन यूनिवर्सिटी के साइंसदानों ने अपने अध्धय्यन से ऐसे ही निष्कर्ष निकालें हैं ।
पशु कल्याण और व्यवहार शोध समूह के मुखिया (ब्रिस्टल विश्वविद्यालय स्कूल ऑफ़ क्लिनिकल वेटेरिनरी साइंस )के मिके मेंडल तथा लिंकन विश्विद्यालय के ओलिवर बर्मन के मुताबिक़ पशु अपने आस पास के माहौल से असर ग्रस्त हो जातें हैं .शिकारी जीवों से घिरा एक पशु विचलित और बे -चैनी महसूस करता है जब की उसके बरक्स एक और पशु जो ऐसे माहौल में है जहां बेशुमार संशाधनों तक उसकी पहुँच है निश्चिन्त और धनात्मक मनस्थिति में दिखलाई देता है .बे -फ़िक्र ।बे -खौफ .
दुविधापूर्ण ,अनिश्चित ,अस्पष्ट माहौल में यही भाव जगत उसके फैसलों को असर ग्रस्त करता है .नतीजा अच्छा भी हो सकता है खराब भी ।
मेंडल के अनुसार हम इन पशु विकल्पों ,एनीमल चोइसिस का वस्तुपरक जायजा लेने में समर्थ हैं .पशु द्वारा लिया गया आस निरास (आशावादी या फिर निराशा भरा चयन )उसके भाव जगत का सूचक बन सकता है .जिसका जायजा लेना अन्यथा इतना आसान नहीं है ।
आम जन की पशु कल्याण में दिलचस्पी उनके प्रति समाज के व्यवहार को निश्चयही प्रभावित करेगी .आखिर समाज उन्हें बरतता है .उनका स्तेमाल करता है घर से लेकर लैब तक ।
यह नज़रिया उनके भाव जगत को बूझने में मददगार सिद्ध हो सकता है .उनकी भी अपनी रागात्मक ज़रूरीयात हैं ,भाव अनुभाव ,राग विराग हैं .सुख दुःख हैं .अपना एक मानस है .एक पारितंत्र है .

कोई टिप्पणी नहीं: