हियरिंग लोस ऑन दी राइज़ ,टीन्स आस्क्ड टू टर्न डाउन आई पोड्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,अगस्त १९ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
एक अध्ययन के मुताबिक़ अमरीकी किशोर किशोरियों में गत १५ पन्द्रह सालों में तकरीबन श्रवण सम्बन्धी समस्याएँ एक तिहाई बढ़ गईं हैं .आज पांच में से एक किशोर- गणको कम सुनाई देता है ।
अमरीकी चिकित्सा संघ के एक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में १९९० के आरंभिक चरण से लेकर २००० के मध्य तक के राष्ट्रीय सर्वेक्षणों की तुलना की गई है .इनमे से हरेक सर्वे में १२ -१९ साला किशोरावस्था के हजारों छात्र शामिल रहें हैं .इसलिए इन्हें प्रतिनिधिक सर्वे कहा समझा जा सकता है ।
इनमे से पहले सर्वे में माहिरों के अनुसार १५ फीसद इस आयु वर्ग के लोग कम सुनने की समस्या सेकमोबेश ग्रस्त थे .१५ साल बाद यह संख्या एक तिहाई बढ़कर २० फीसद हो गई है .इसका मतलब यह हुआ पांच में से एक किशोर -किशोरी श्रवण सम्बन्धी किसी ना किसी समस्या से ग्रस्त रहा ।
ब्रिघम एंड वोमेन्स हॉस्पिटल ,बोस्टन के रिसर्चर कहतें हैं इसका मतलब यह हुआ हर कक्षा (क्लास रूम्स )में से कुछ ना कुछ बच्चे हियरिंग लोस से ग्रस्त हैं ।
किशोर किशोरियों को इसका अंदाजा ही नहीं है कितने शोर से बावस्ता रहतें हैं ये लोग .कोई इल्म ही नहीं है इसका .बे -खबर अनजान बने रहतें हैं इस गैर ज़रूरी शोर से जबकि सुनने की शक्ति का थोड़ा भी कम होना भाषा के विकास और सीखने की प्रक्रिया को कुंद कर देता है ।
अध्ययन में यह भी पता चला ज्यादातर मामलों में एक कान शोर से असर ग्रस्त हुआ है लेकिन असर दिनानुदिन बद से बदतर हो रहा है ।
दुर्भाग्य यह है पसंदीदा संगीत को (म्युज़िक ऑन देयर एम् पी थ्री प्लेयर्स )को ये लोग शोर ही नहीं मानते .
गुरुवार, 19 अगस्त 2010
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