बुधवार, 11 अगस्त 2010

अच्छी नींद का भेद खुला

सीक्रेट्स ऑफ़ ए गुड नाइट्स स्लीप आउट (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,अगस्त ११ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
साइंसदानों ने यह भेद खोल दिया है क्यों कुछ लोग शोर शराबे के बावजूद चैन की नींद में चले जातें हैं .आधुनिक जीवन का गुलगपाड़ा उन्हें पता ही नहीं चलता .जबकि कुछ के बारे में कहा भी जाता है -कुत्ते की नींद सोतें हैं .ज़रा सा व्यवधान हुआ नहीं नींद गायब .किरकिट कमेंट्री इनकी नींद में खलल की वजह बन जाती है(जबकि कुछ और लोग कमेंट्री सुनते सुनते ही सो जातें हैं .और तो और सिनेमा हाल में भी सो जातें हैं .शो ख़त्म हो जाने के बाद जगाना पड़ता है ।)
हारवर्ड मेडिकल स्कूल के साइंसदानों की एक टीम ने पता लगाया है ,दिमाग का एक हिस्सा नीद के दौरान हमें आवाजों से अनजान बना देता है .ब्लोक कर देता है साउंड्स को .इसे थैलेमस कहा जाता है ।
आम तौर पर दिमागी तरंगेंआराम के दौरान स्लो हो जाती हैं लेकिन दिमाग इस दरमियान भी" स्लीप -स्पिन -डील्स"ब्रीफ एनर्जी बर्स्ट , पैदा करता रहता है .इन्हें ब्रीफ एनर्जी बर्स्ट भी कहा जाता है .जिनमे इन स्पिनदिल्स की दर उच्चतर बनी रहती है उनकी नींद में थोड़ा सा शोर भीफुसफुसाहट भी खलल डाल देता है शेष घोड़े बेच कर सोते रहतें हैं .नींद के बारे में किसी ने दार्शनिक अंदाज़ में कहा है -मौत का एक दिन मुऐयन है ,नींद क्यूं रात भर नहीं आती है ।
नींद आती तो खाब आते ,खाब आते तो तुम आते ,तुम्हारी याद में ,ना नींद आई ,ना खाब आये ,ना तुम आये ।
'याद में तेरी जाग जाग के हम ,रात भर करवटें बदलतें हैं "
याद ना जाए बीते दिनों की ...
जाग दर्द ,इश्क जाग, दिल को बेकरार, कर ....

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