बुधवार, 25 अगस्त 2010

आसमानी बिजली से होंगे घर रोशन ?

लाईट -निंग टू पावर होम्स .साइंटिस्ट्स आर वर्किंग ऑन ए डिवाइस टू केप्चर इलेक्ट्री -सिटी फ्रॉम लाईट -निंग बिफोर इट इविन फोर्म्स एंड यूज़ इट टू पावर अवर होम्स (मुंबई मिरर अगस्त २५ ,२०१० ,पृष्ठ २८ )।
क्या आप ऐसी प्रविधियों की कल्पना कर सकतें हैं जो नम हवा से बिजली निकाल लें ठीक वैसे ही जैसे सौर बेतरियाँ(सोलर सेल्स )सौर विकिरण से जुटा लेतीं हैं .और इस बिजली से ही आपके घर भी रोशन हों .घर की छत पर लगे पैनल आसमानी बिजली को बनने से पहले ही रोक लें .यकीन मानिए इस दिशा में साइंसदान आगे बढ़ें हैं .काम हो रहा है ।
इस अध्ययन के अगुवा फेरनान्दो गलेमबेक्क कहतें हैं हमारी रिसर्च वायुमंडलीय बिजली को एक ऊर्जा स्रोत में बदल देने के लिए ही है .आखिर आसमानी बिजली कैसे बनने के बाद आसमान में विसर्जित होती है ,दो सौ साल पुरानी इस पहेली का हल मिलता दिख रहा है .यदि इसे हम बूझ सके तो एक दिन आसमानी बिजली के ज़मीन पर गिरने से होने वाली मौतों को भी मुल्तवी रख सकेंगें .जन धन की तबाही की वजह बनती है यह आसमानी बिजली ।बरसों से आसमानी बिजली साइंसदानों को ललचाती तरसाती रही है .कैसे इसे व्यवस्थित कर काम में लगाया जाए ?जाया ना जाने दिया जाए ?तबाही ना मचाने दी जाए इस आसमानी बिजली को आपदा बनकर।
साइंसदानों ने देखा है जब भाप तैयार कने वाले पात्रों (वाश्पित्रों ,बायलर्स )से गर्म भाप रिसती है ,हवा में तेज़ी से दौड़ती है आवाज़ करती (घर्षण बल के खिलाफ )तब स्थेतिक बिजली (स्टेटिक इलेक्त्रिसिती )पैदा
होती है .जो कर्मी इस भाप को छूतें हैं उन्हें बिजली का झटका भी महसूस होता है .(आप की कार भी इलेक्त्रिफ़ाइद हो जाती है कुछ सौ किलोमीटर्स दौड़ने के बाद हवा के घर्षण बल से ।).छू कर देखिये झटका लगेगा .
नाम चीन साइंसदान और अन्वेषक निकोला टेस्ला हवा से बिजली तैयार करने का खाब देखा करता था ।
जब धूल के अति सूक्ष्म कणों तथा इतर हवा में तैरते कणों के गिर्द जल वाष्प
बनती है ,थोड़ी सी बिजली भी पैदा हो जाती है .लेकिन अभी हाल फिलाल तक साइंस दानों को इस बात का इल्म नहीं था ,कैसे जल से बिजली मुक्त होती है ,वायुमंडल में ,कौन सी प्रक्रियाएं इसके पीछे काम करतीं हैं .यही मंतव्य है गलेमबेक्क का .आप काम्पिनस विश्व -विद्यालय ,ब्राज़ील से सम्बद्ध हैं ।
आखिर है क्याहै "हाइग्रो -इलेक -ट्री-सिटी "?यानी आद्रता -विद्युत् क्या है ?
साइंसदान ऐसा समझते थे ,हवा में तैरती पानी की बूँदें आवेश हीन तथा विद्युत् उदासीन होतीं हैं .इलेक्ट्रिकली न्यूट्रल होतीं हैं वाटर ड्रोप्लेट्स .तथा हवा में मौजूदआवेशित धूल कणों (विद्युत् आवेशोंसे युक्त धूल कणों ) तथा इतर तरल पदार्थों की आवेशित बुंदियों केसंपर्क में आने के बाद भी ये बूँदें उदासीन ही बनी रहतीं हैं .
लेकिन अब पता चला है वायुमंडलीय जल आवेश युक्त हो जाता है .आवेश को ग्रहण कर लेता है .लैब में यह आजमाइशें दोहराई गईं हैं .जल को धूल कणों से सम्पर्कित करके देखा गया है ठीक वैसी परिस्थिति लैब में बुनकर जैसी वायुमंडल में मौजूद रहतीं हैं .
इस एवज सिलिकाएवं एल्युमिनियम फोस्फैट के अति -सूक्ष्म कणों का स्तेमाल किया गया .पता चला हैनमी की मौजूदगी में सिलिका ज्यादा से ज्यादा ऋण तथा एल्युमिनियम फोस्फैट धन आवेशित हो गया .आप जानतें हैं यह दोनों ही कण वायुमंडल में भी तैरते पैदा होते रहतें हैं .
इससे साफ़ पता चलता है ,वायुमंडल मेंमौजूद जल भी विद्युत् आवेश एकत्र कर सकता है .तथा इसे अपने संपर्क में आने वाले अन्य पदार्थों (पदार्थों के अणुओं को ) अंतरित कर सकता है .यही हाइग्रो -इलेक्त्रिसिती है .आम भाषा में कहें तो आर्द्रता विद्युत् है ,ह्यूमि -डीटी इलेक्त्रिसिती है .(वायुमंडल में मौजूद जल की मात्रा को आर्द्रता कहा जाता है .दी अमाउंट ऑफ़ वाटर वेपर (मोइस्चर)प्रिजेंट इन दी एटमोस्फियर इस काल्ड ह्यूमि -डीटी .आम भाषा में हवा की नमी ही आर्द्रता है ।
सवाल इसी आर्द्रता बिजली के दोहन -शोषण का है :
हो सकता है कल सोलर सेल्स की तरह हाइग्रो -इलेक्त्रिसिती कलेक्टर्स भी बना लिए जाएँ .जैसे सौर सेल्स, सौर- विकिरण, समेट लेतीं हैं .फिर उसी से बिजली बना लेतीं हैं वैसे ही यहसंग्राहक , कलेक्टर्स, वायुमंडलीय बिजली को समेट लें और एक दिन हमारे घरों को रोशन कर दें .प्रकृति की विनाश लीला को सृजन में तब्दील करने का उपाय भी साइंस दानों के हाथ लग जाए .
मुंबई जैसे आर्द्र इलाके सर्वोत्तम साबित होंगे इन संग्राहकों के लिए ,जैसेसाल भर ज्यादा से ज्यादा सन -शाइन वाले इलाके सोलर पैनल्स के लिए बेहतर रहतें हैं .हाइग्रो -इलेक्ट्रिकल पैनल्स का फिलाल इंतज़ार कीजिये ।
हो सकता है एक दिन आसमानी बिजली को भी इसी उपाय से गिरने ,तबाही मचाने से पहले सृजन में तब्दील कर दिया जाए .गर्जन झंझा वाले इलाकों में इमारतों की छतों पर इन पैनलों को समायोजित कर दिया जाए .हवा से बिजली खींच लेंगे यह पैनल्स .और इमारतों को विनष्ट होने से बचा लिया जाएगा .अभि -नव धातुओं (मेटल्स )की तलाश का काम शुरू हो चुका है इसी नीयत से ,जो ज्यादा से ज्यादा बिजली हवा से ग्रहण कर सकें ।
यह शैर बड़ा मौजू है इस स्थिति के लिए -
"सितारों से आगे जहां और भी हैं ,तेरे सामने इम्तिहान और भी हैं ."

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