व्हाट यु नीद टू नो अबाउट ओवेरियन कैंसर .एक्सपर्ट्स टाक अबाउट दी सिम- टम्स एंड काज़िज़ अबाउट दिस लाइफ थ्रेट -निंग डीसीज़ टू ,जीनिया ऍफ़ बरिया. (बॉडी एंड सोल /बोम्बे टाइम्स ,दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अगस्त १४ ,२०१० )।
दुर्घटना संभावित स्थलों पर लिखा होता है -जल्दी से देर भली लेकिन कुछ मामले ऐसे हैं जहां जल्दी (शिनाख्त ,डाय्ग -नोसिस )ही काम आती है ,जान भी बचा सकती है .ओवेरियन कैंसर की जल्दी से जल्दी से जल्दी शिनाख्त होना ऐसा ही मामला है .अकसर रोग अंतिम चरण में पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ।
भारत में हर साल ओवेरियन कैंसर के २३,००० मामले दर्ज़ होतें हैं .इनेम से १५ ,९०० जान लेवा साबित होतें हैं .जान से जातें हैंजहां से जातें हैं हर साल इतने लोग(मोतार्मायें ) .यह कैंसर से होने वाली मौतों की चौथी आम वजह बन रहा है .इनमे से ७० फीसद मामले रोगके जब तक पकड़ में आतें हैं रोग बे- तरह बढ़ चुका होता है .गाय्नेकोलोजिकल (स्त्री रोग सम्बन्धी )कैंसरों में इसका तीसरा स्थान बना हुआ है .औरतों को असर ग्रस्त बनाने वाले कैंसरों में इसका पांचवां स्थान बरकरार है ।
दुर्भाग्य यह भी है लेदेकर स्तन कैंसर के बारे में तो थोड़ी बहुत जागरूकता दिखलाई देती है अंडाशय कैंसर की तरफ लोगों का ध्यान नहीं गया है .इक्का दुक्का ही इससे बा -खबर है ।
हम जानतें हैं औरतों की ओवरीज़ (दो अंडाशय होतें हैं बायाँ और दायाँ ,स्त्री हारमोन और ह्यूमेन एग तैयार करतें हैं अंडाशय, मर्दों के एंड -कोशों, की तरह ,टेस- टीज़की तरह ).पेल्विस में अवस्थित होतीं हैं ओवरीज़ ।
पेल्विस :व्यक्तिकी पीठ,नीचे स्थित चौड़ी हड्डियों का समुच्चय जिससे टांगें जुडी होतीं हैं .,श्रोणी या पेल्विस कहलाता है .औरतों की पेल्विक रीजन को श्रोणी प्रदेश कहा जाता है .पेल्विक फीटल इन -कम्पेबिलितीही कई मर्तबा सीजेरियन सेक्शन की वजह बनती है ।
ओवेरियन कैंसर के लक्षण प्रच्छन्नरूप बने रहतें हैं जबतक प्रकट होतें हैं घातक रूख इख्त्यार कर लेता है अंडाशय कैंसर .
ज्यादातर मामलों में पहले एब्डोमिनल गर्थ(कमर का घेरा बढ़ता है जिसे अकसर प्रोढा- वस्था का फैलाव मान समझकर बरतरफ़ कर दिया जाता है (एब्डोमिनल ओबेसिटी का भी मुगालता होता है )।
पेल्विक या एब्डोमिनल पैन भी दस्तक देता है .बार बार पेशाब आता है .युरिनेशन की फ्रीक्युवेंसी बढ़ जाती है .खाने में दिक्कत आती है .पेट भरने का एहसास नहीं होता .हालाकि ये तमाम कारण अकसर किसी और वजह से भी हो सकतें हैं इसीलिए रोग निदान काभरोसे मंद कारण नहीं बन पाते .इन्हें नॉन मलिग्नेंट ही माना समझा जाता है .इसीलिए रोग निदान में अकसर देरी हो जाती है ।कैंसर माहिर डॉ इअन दसूज़ा ऐसी ही राय रखतें हैं ।
जबकि कैंसर सर्जन (ओन्को-सर्जन )डॉ अनिल हेरूर के मुताबिक़ यह एक ऐसा कैंसर है जिसमे अतिरिक्त जागरूकता (खबरदारी )ज्यादा काम आती है क्योंकि रोग घात लगाके चुपके चुपके आता है ।
"देयर आर सम अर्ली सिम्टम्स लाइक वेग पैन एंड डिसकम्फर्ट बट मोस्ट ऑफ़ दी टाइम देअर इज नो डेफिनित सिम्तम ."
ज्यादा तर मरिज़ाओं की भूख मर जाती है .एब्दोमन में एक मॉस (कुछ वजन महसूस होता है )जो वास्तव में ओवेरियन ट्यूमर होता है .इसी की वजह से उदर में तरल जमा हो जाता है .कमर का घेरा इसी वजह से बढ़ता है .भूख भी इसी वजह से कम लगती है .(लोस ऑफ़ एपेटाईट सिम्तमहै .).डॉ हेरूर ऐसा मानतें हैं ।
क्या कहतीं हैं कैंसर माहिर डॉ आशा कपाडिया :पारिवारिक कारण ओवेरियन कैंसर के ८-१० फीसदमामलों में ही सामने आतें हैं .ज्यादातर स्परेदिक (अनियमित रूप से हो जातें हैं .),कभी कभी होतें हैं ।
अंडाशय कैंसर की सही सही वजह बताना मुश्किल बना रहता है .लेकिन कुछ कारण बढे हुए जोखिम के लिए जिम्मेवार माने जातें हैं ।
(१)जिन्हें बच्चे नहीं पैदा होते या जो बच्चे पैदा ही नहीं करतींउनके लिए रोग का ख़तरा बढा हुआ रहता है . .(२)अलबत्ता जिनके बच्चे होतें हैं उनके लिए खतरे का वजन कम रह जाता है,स्तन पान करवातीं हैं जो शिशु -ओं को,कुछ महिलायें परिवार नियोजन के उपाय के बतौर त्युबल लाइगेशन अपनातीं हैं .इस टेक्नीक में औरतों की फेलोपियन ट्यूब्स (अंड- वाहिनी नलिकाएं )आपस में बाँध दी जातीं हैं ताकि ओवम गर्भाशय तक पहुँच ही ना पाए ,.गर्भ निरोधी गोलियां खातीं हैं उनके लिएभी इसके खतरे का वजन अपेखाक्रित कम रहता है ।
इन्सेसेंत ओव्यूलेशन(ह्यूमेन एग का रिलीज़ होते रहना ,अविराम ) ,जल्दी रजोदर्शन (अर्ली मेनार्के ),देर से रजोनिवृत्ति (लेट मिनोपोज़ )तथा हेरिडिट्रीसिंड्रोम भी १०-१५ फीसद मामलों में अंडाशय कैंसर की वजह बन जातें हैं .ट्रीटमेंट :इलाज़ के बतौर केमो -थिरेपी (चिकित्सा के लिए कुछ रसायनों का स्तेमाल )तथा सर्जरी दोनों को ही आजमाया जाता है .मिक्सो -थिरेपी कह सकतें हैं इसे आप .केमो -थिरेपेतिक ड्रग रेस्पोंसअच्छा आता है ओवेरियन कैंसर का .तीन चक्र आम तौर पर किमो -थिरेपी के संपन्न होने पर साइटों -रिडक -टीव सर्जरी की जाती है इसके बाद एक बार फिर तीन चक्र किमो -थिरेपी के चलतें हैं .लेकिन जल्दी शिनाख्त होने पर सर्जरी ही सबसे बढ़िया उपाय माना जाता है ओवेरियन कैंसर के प्रबंधन का .ओन्को -सर्जन तथा गाय्नेक -ओन्को -सर्जन दोनों की ही ज़रूरत पड़ सकती है .
सर्जरी का मकसद होता है पेल्विस और एब्दोमन दोनों जगह से बीमार हिस्से को निकाल बाहर करना .
जल्दी शिनाख्त के लिए ज़रूरी उपाय :
नियमित गाय्नेक जांच .पेल्विस का अल्ट्रा साउंड .ओरल कोंतर्सेप्तिव ख़ास कर उन महिलाओं के लिए प्रभावी सिद्ध हो सकतें हैं जिनके परिवार में यह रोग चलता आया है ।
इफ वन हेज़ ए प्रूवन इन -हेरिटिद जेनेटिक म्यूटेशन फॉर दी डीज़ीज़ कैन कंसीडर ए टोटल एब्डोमिनल हिस्टे -रेक --टमी विद रिमूवल ऑफ़ बोथ ओवरीज़ .दीज़ मेथड्स ओनली रिड्यूस दी रिस्क बट नॉट इराडिकेट इट कम्प्लीटली .
साइटों -रिडक -टीव सर्जरी :प्लीज़ रेफर टू डोर्लैन्ड्स मेडिकल डिक्शनरी
शनिवार, 14 अगस्त 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें