नॉट जस्ट ए हेबिट ,लेज़िनेस इज ए डिसीज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,अगस्त ११ ,२०१० ,पृष्ठ १९)/लेज़ी डे आउट /दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,अगस्त १२ ,२०१० ,पृष्ठ १८।
लन्दन में रिसर्चर्स की इन दिनों एक ऐसी टोली मौजूद है जो आलस्य (सुस्ती )को डिप्रेशन की तरह एक स्वतंत्र रोग का दर्जा दिलवाना चाहती है जबकि इसकी कोई ओरगेनिक (माल फंक्शन )या अन्य रोगकारक वजह का भी खुलासा नहीं किया गया है ।
तर्क यह है "इन -एक -टी- विटी"कोच पोटेटो बने बैठे ठाले रहना, सभी रोगों की जननी है .पहले मोटापा ,फिरउच्च रक्त चाप और फिर हृद रोग .तो हो गई ना सुस्ती, डायबिटीज़ की तरह, रोग उत्पादक और रोग कारक ।
लेकिन कुछ लोग इस राय से इत्तेफाक नहीं रखते .बकौल उनके -"लेज़िनेस इज ए विल्ड चाइस"
उसे घसीट कर चिकित्सा के दायरे में लाना प्रमाद का चिकित्सी -करण करना नहीं है तो और क्या है ?इस तरह सरलीकृत निष्कर्ष निकाल ना अपने आप में एक "मेडिकल एम्पायर बिल्डिंग "है सोच का दिवालियापन है .लेज़ी थिंकिंग है ।
आखिर लेज़िनेस का अपना ग्लेमर और आकर्षण है .मैंने स्वयं ऐसे परिवार देखें हैं जहां एक से बढ़कर एक कुम्भकरण हैं .आलस एक मूल्य बोध है .एक फलसफा है ।
आज करे सो कल कर ,कल करे सो परसों ,ऐसी जल्दी क्या पड़ी ,जब जीना है ,तुझे बरसों ।
इस पर भी गौर करे -किस किसका रोना रोइए ,किस किसको कोसिये .आराम बड़ी चीज़ है ,मुह ढक के सोइए .
गुरुवार, 12 अगस्त 2010
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