शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

वार्मिंग बन गई थी मांश भक्षी जीवों के विकास क्रम में लघुतर रह जाने की वजह

वार्मिंग श्रेंक कार्नी -वोर्स ५५ मिलियन ईयर्स एगो (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,अगस्त २७ ,२०१० ,पृष्ठ २३ ).
अब से कोई साढ़े पांच करोड़ बरस पहले भी पृथ्वी पर विश्व -व्यापी तापन का दौर आया था फलस्वरूप मांस भक्षी स्तनपाई जीवों की कई प्रजातियाँ जिनका अब पृथ्वी से सफाया हो चुका है विकाश क्रम में सिमट कर आकार में भी छोटी रह गईं थीं .फ्लोरिडा विश्व विद्यालय के एक अध्ययन से यह बात उजागर हुई है ।
अध्ययन विश्व -व्यापी तापन की इस अवधि (पीरियड ऑफ़ ग्लोबल वार्मिंग )में उन नै प्रजातियों के विकाश को रेखांकित करता है जिनका कद सिमट कर पूर्व की कद काठी के बरक्स आधा ही रह गया था ।
मसलन इसी दौर में अफ्रिका और एशिया में पाया जाने वाला कुत्ते जैसा एक जंगली जानवर जो लाशों का मांश खाता था (लक्कड़ -बघ्घा सरीखाऔर मनुष्यों की हंसी की नक़ल उतार लेता था ,वैसी ही आवाजें निकाल कर )"पलेओनिक्तिस विंगी" रीछ के अपनेपूर्व आकार से घटकर उत्तरी अमरीका के घास के मैदानों में पाए जाने वाले एक भेड़ियाजैसा रह गया .इसे कोयोते कहा गया था .बेशक ऐसा होने में २०० ,००० बरस लगे .लेकिन उस दौर में भी पृथ्वी का औसत तापमान तकरीबन १५ फारनहाईट बढ़ गया था ।
इसके बाद जब तापन समाप्त हुआ ,विश्व -व्यापी ठंडक (कूलिंग )का दौर आया ,पशुओंका डील डौलविकाश क्रम में एक बार फिर बढ़ गया .

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