"बीयर रेज़िज़ रिस्क ऑफ़ स्किन डिजीज इन वोमेन बाई ७० %(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,अगस्त १८ .२०१० ,पृष्ठ २३ )।
एक अध्ययन के मुताबिक़ जो महिलायें बीयर का नियमित स्तेमाल करतीं हैं (लाइफ स्टाइल है ,फेशन स्टेटमेंट है जिनके लिए रोज़ -ब-रोज़ बीयर पीना )उनके लिए चर्मरोग "सोरियासिस "का ख़तरा ७० फीसद बढ़ जाता है ।
सोरियासिस एक ऑटो -इम्यून डिजीज है (जिसमे रोग प्रति -रोधी तंत्र को अपने पराये की पहचान ही नहीं रहती शरीर खुद को ही निशाना बनाने लगता है ,प्रहरी कोशाओं को दुश्मन मानने समझने लगता है .),स्केलि लीश्जन ,चमड़ी का लाल पड़ना ,चमड़ी का रोग -संक्रमण इसकेआम लक्षण हैं .विश्व -स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ आबादी का २-३ % हिस्सा इससे असर -ग्रस्त बना रहता है ।
माहिर इस रोग की ठीक ठीक वजह तो नहीं जान सकें हैं अलबत्ता उनका विश्वाश है कोई एक ऐसा ट्रिगर है जो इम्यून सिस्टम को एड लगा देता है .बस यहीं से एक चैन रिएक्शन चल निकलती है जिसके तहत कोशायें तेज़ी से द्विगुणित होने लगती हैं .देखते ही देखते कोशाओं की फौज खड़ी होने लगती है .लाइव साइंस में प्रकाशित हुआ है यह अध्ययन ।
एल्कोहल मुद्दत से निशाने पर रहा है इसके काज़ेतिव एजेंट्स में .इस आशंका की पड़ताल के लिए ही ब्रिघम एंड वोमेन्स हॉस्पिटल तथा हारवर्ड मेडिकल स्कूल के माहिरों ने ८२८६९ महिलाओं से ताल्लुक रखने वाले १९९१ के अध्ययनऔर बाद के फोलो -अप आंकड़ों का विश्लेसन किया है .
पता चला उन महिलाओं के लिए जो हफ्तें में २-३ ड्रिंक्स "रेग्युलर बीयर "के लेती रहीं हैं ,सोरियासिस के खतरे का वजन बढ़कर ७२ %ज्यादा हो जाता है बरक्स उनके जो बीयर को हाथ नहीं लगातीं हैं ।
अलबत्ता लाईट बीयर ,रेड वाइन ,वाईट वाइन या लिकर का सेवन करने वाली महिलाओं में इस प्रकार के किसी अंतर -सम्बन्ध की पुष्टि नहीं हुई है ।
यह भी पता चला ,पांच या पांच से भी ज्यादा प्रति -सप्ताह नॉन -लाईट बीयर लेने वाली महिलाओं के लिए सोरियासिस का जोखिम १.८ गुना बढ़ जाता है यानी तकरीबन दो गुना ही ज्यादा हो जाता है बरक्स उनके जो बीयर को हाथ ही नहीं लगातीं .
सोरियासिस :इट इज ए स्किन डिजीज मार्कड बाई रेड स्केलि पेचिज़ .सोरियासिस काज़िज़ रफ रेड एरियाज़ व्हेयर दी स्किन कम्स ऑफ़ इन स्माल पिसिज़ .इट इज ए कोमन क्रोनिक डिजीज ऑफ़ दी स्किन कन्सिस्टिंग ऑफ़ एरिथि -मेटस पेप्युल्स देट को -एलेस ,कम टुगेदर ,टू फॉर्म प्लाक्स विद डिस -टिंक्त बोर्डर्स .इफ दी डिजीज प्रोग्रेसिज़ एंड इज अन -ट्रीतिद ,ए सिल्वरी ,येलो -वाईट स्केल दिवेलप्स .न्यू लीस्जंस टेंड टू डिवेलप एट साइट्स ऑफ़ ट्रॉमा.दे मे बी एट एनी लोकेशन बट फ्री -कुवेंटली आर लोकेटिद ऑन दी स्केल्प ,नीज ,एल्बोज़ ,अम्बैलिकस एंड जेनिटेलिया।
हिंदी भाषा में "सराई -असिस"को कहाजाता है -"छाल -रोग ".एक ऐसा चर्म रोग जिसमे लाल चकत्ते पड़ जातें हैं .
ऑटो -इम्यून -डिजीज क्या है ?
ए डिजीज काज़्द बाई दी रिएक्शन ऑफ़ एंटी -बॉडीज टू सब्स्टेंसिज़ देट अकर नेच्युरली इन दी बॉडी .
बुधवार, 18 अगस्त 2010
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1 टिप्पणी:
अब सब रिसर्च बेकार और इन साले पैसे के लोभी-लालची लोगों द्वारा अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए किया जाता है इसका कोई भी प्रमाणिक आधार नहीं होता है ,बेईमान लोग रिसर्च करेंगे ,पैसा डॉक्टर और डिग्री को पैदा करेगा तो ऐसे ही रिसर्च होंगे | अब तो लोगों को बहुत ही जाँच परख कर इमानदार लोगों की बात माननी चाहिए ना की इन मिडिया में छपी ख़बरों को ,ये मिडिया तो पैसे के लिए कुछ भी छाप सकता है ...
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