जस्ट ए ग्लिप्म्ज़ ऑफ़ योर मोम "लाइट्स अप" दी ब्रेन .इमेज़िज़ ऑफ़ ए पर्सन्स मदर 'लाईट अप "एरियाज़ की टू रिकग्नीशन एंड इमोशन ,व्हाइल फादर्स प्रोड्यूस ए लोवर रेस्पोंस .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,न्यू -देल्ही ,अगस्त ३१ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )।
दिल में हरेक के एक ख़ास जगह लिए रहती है ,माँ .इधर दो हालिया अध्ययनों ने खुलासा किया है ,दिमाग पर भी अमिट और विशिष्ठ छाप छोडती है ,माँ ।
एक कनाडाई अध्ययन में बतलाया गया है ,माँ की झलक मिलते ही व्यक्ति के दिमाग की कोशाओं को उत्तेजन मिलता है .जबकि अमरीकी अध्ययन के अनुसार माँ का स्वर (भले ही दूर ध्वनी से ही आप तक पहुंचा हो ),माँ का स्पर्श आलिंगन व्यक्ति की सारी चिड -चिडाहट सारा गुस्सा काफूर कर देता है .शांत ,आश्वश्त हो जातें है आप ।
कनाडाई अध्ययन में स्वयं सेवियों की दिमागी सक्रियता उन्हें क्रमशय माँ ,पिता,नाम चीन हस्तियों तथा अजनबियों की छवियाँ दिखलाते हुए दर्ज़ की गई ।
माँ की छवि दिमाग के उस हिस्से को रोशन कर देती है जिसका सम्बन्ध हमारे संवेदनों और किसी को पहचानने से है .जान पहचान से है .पिता के मामलेमें यह हिस्से उतने रोशन नहीं होतें हैं .तीसरा और चौथा स्थान इस आलोकित होने के घटते क्रम में नाम चीन हस्तियों और अजनबियों को प्राप्त होता है ।
इतना ही नहीं यह आलोडन उत्तेजन उन लोगों में भी बना रहता है जो बरसों से अपने माँ -बाप से अलग रह रहें हैं .ज़ाहिर है प्रभाव चिरकालिक होता है ।
अमरीकन अध्ययन माँ का चेहरा उसकी आवाज़ भर सुनने से व्यक्ति की आवेग की स्थिति और झून्झ्ल के हवा हो जाने के पीछे हारमोन ओक्सी -तोक्सिन का हाथ देखते हैं जिसका बन्नामाँ -बच्चे के परस्पर स्नेह बंधन से रहा आया है .
मंगलवार, 31 अगस्त 2010
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2 टिप्पणियां:
बहुत सही कहा है , माँ के साथ हिफाज़त का अहसास होता है , वो छाया ..वो बेशर्त का प्यार ..वो चैन का अहसास , सारी उम्र हमारा बचपन ही तो बोलता है । यहाँ तक कि बड़े होकर हम खाना भी वही पसंद करते हैं जो हमें हमारी माँ ने खिलाया होता है , यानि स्वाद की ग्रंथि भी माँ को पहचानती है ।
बिलकुल सही कहा है आपने..... बहुत खूब!
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