सुपर्बग फाउंड इन इंडिया ,स्पार्क्स ग्लोबल मेड स्केयर (लीड स्टोरी ,टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अगस्त १२ ,२०१० , फ्रंट पेज ,पृष्ठ /१ )
दी लांसेट इन्फेक -शश डिजीज जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक़ साइंसदानों ने एक ऐसे सुपर्बग का पता लगाया है जिस पर ज्ञात एंटीबाय- टिक्स दवाएं बेअसर बनी रहतीं हैं क्योंकि यह रोगाणु की एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस किस्म है . जिसका पता उन ब्रितानी मरीजों में चला है जो कभी भारत के अस्पतालों मेंभी किसी चरण में इलाज़ करवा चुकें हैं । समझा बताया जा रहा है , यह रोगाणु मल्टी- पिल ओरगेन फेलियोर की वजह बनता है ,मरीजों को आसानी से रोग संक्रमित कर देता है ।
कथित सुपर्बग (जिसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के साइंसदान पश्चिम कीभारत के विकसित चिकित्सा पर्यटन उद्योग के खिलाफ शाजिश ,दिमागी खपत बतला रहें हैं ) न्यू -देहली मेट -आलो -लाक -टा -मेज़ (एन डी एम् -१ )एक ऐसी जीन का वाहक है जो गैस्ट्रिक प्रोब्लम्स (उदर- सम्बन्धी समस्याएं )ही नहीं पैदा करता ,रक्त संचरण में शामिल हो एक से ज्यादा अंगों के कार्य -व्यापार को ठप्प करवा देता है .और आखिर-कार मौत की भी वजह बन सकता है .
गौर तलब है भारत कोस्मेटिक सर्जरी का भी आकर्षक और प्रति -योगी केंद्र भी बन चुका है .इसलिए पश्चिम के साइंसदान इसके(एंडी एम् -१ ) दुनिया भर में फ़ैल जाने की आशंका व्यक्त कर रहें हैं .हो सकता है यह शुद्ध प्रोपेगेंडा हो फ्लेजलिंग मेडिकल टूरिज्म के खिलाफ ,सौतिया डाह हो ।
सबकी निगाह भारतीय अस्पतालों की संक्रमण विनियमन (नियंत्रण )नीति पर आ टिकी है ।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के माहिरों का साफ़ कहना है "इस प्रकार का रोग संक्रमण दुनिया के किसी भी कौने से आ सकता है .भारत के अस्पतालों को ही क्यों निशाने पर लिया जा रहा है .वजह भारत का फैलता चिकित्सा बाज़ार है ,चिकित्सा पर्यटन उद्योग है ,जो प्रतियोगी और तसल्ली बक्श चिकित्सा मुहैया करवा रहा है ।
बेशक एक स्वीडन के मरीज़ की यहाँ शल्य चिकित्सा२००८ में हुई थी जिसमे यह सुपर्बग भी मिला था .लेकिन इससे इसके उद्गम पर टिपण्णी करना जल्दबाजी ही नहीं ,बे -मानी भी है . चिल्ल पौ मचाने की वाजिब वजह नहीं है .
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