यक़ीनन क्लाउड बर्स्ट मूसलाधार बरसात को ही कहतें हैं जो अकसर गर्जन और औलावृष्टि के साथ होती है और चंद मिनिटों में एक सीमित इलाके ,भौगोलिक क्षेत्र में जल प्लावन सा मंज़र पैदा कर देतें हैं तबाही का ।
बादल को आम तौर पर एक ठोस सघन पिंड ही माना जाता रहा है ,बेशक जो लबालब पानी से भी भरा रहता है .इसीलिए इसका यूं हाई -एलटी -त्युद (समुद्र तल सेअपेक्षाकृत ज्यादा ऊंचाई वाले भौगोलिक इलाके )इलाकों पर बे -हिसाब बरस पड़ना बादल का फटना कहलाया जाने लगा और बस एक भाषिक परम्परा चल निकली ,क्लाउड बर्स्ट को बादल की फटन कहने समझने की ।
आप जानतें हैं पहाड़ों पर अकसर वायु दाब कमतर ही रहता है लो प्रेशर क्षेत्र बना रहता है .यही निम्न दाब का क्षेत्र बादलों का आवाहन शिखर की ओर पूरे जोशो खरोश ,अतिरिक्त रूप से शक्ति शाली बल के संग करता है .शिखर से टकराने पर बादल यकायक बरस पड़ता है ,बेहिसाब .चंद मिनटों में ही एक छोटे से इलाके में १०० मिलीमीटर तक और कभी कभार और भी ज्यादा बरसात गिरजाती है .
भारत में हिमाचल प्रदेश इस तबाही की अकसर वजह बनता रहा है .सबसे ज्यादा क्लाउड बर्स्ट इसी राज्य में दर्ज़ हुएँ हैं .बरसात के बाद पूरा घाटी क्षेत्र शिलाखंडों से पट जाता है .जिन्हें बरसाती आवेग कहीं का कहीं ले आता है .बेहद का मूमेंटम(संवेग )रहता है इस मूसला धार बरसात में ,गर्जन -तर्जन औला वृष्टि में .
रविवार, 22 अगस्त 2010
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3 टिप्पणियां:
बादल फटने का वैज्ञानिक कारण बता देते तो और अच्छा होता।
प्रकृति भी कैसे कैसे तांडव करती है
ये तो समझ आया. पर बादल क्या सिर्फ़ टकराने की वजह से फ़टता है या इसका कोई और कारण भी होता है?
रामराम.
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