मिड लाइफ स्ट्रेस अप्स अल्झाइमर्स रिस्क (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई अगस्त १८ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
वात्सायन ने औरतों को तीन वर्गों में रखा है -मुग्धा ,मध्या और प्रोढा।
यहाँ हम मध्याओं की ज़िन्दगी में पसरे रहने वाले तनाव का क्या नतीजा हो सकता है इसकी चर्चा करेंगें .पहले यह जाने मिड लाइफ स्ट्रेस का मतलब क्या है ?
एक अध्ययन में महीने से जयादा अवधि तक बनी रहने वाली झल्लाहट (चिड -चिडा -पन ,इर्रिटेशन ),नर्वस नेस (पस्त होसला बने रहना ),बे -चैनी (चिंता या एंग्जाय -टी ,बढ़ता हुआ औत्सुक्य ),किसी भी प्रकार के भय का एहसास बने रहना ,नींद सम्बन्धी समस्याओं ,तनाव आदि को स्ट्रेस का दर्जा दिया गया है ।
एक अध्ययन के मुताबिक़ जो महिलायें मिड लाइफ स्ट्रेस से रू -बा -रू रहतीं हैं ,पसरा रहता है स्ट्रेस रोज़ -बा -रोज़ महीना दर महीनाजिनकी ज़िन्दगी में उनके लिए अल्झाइमर्स रोग होने के खतरे का वजन दो गुना बढ़ जाता है बरक्स उनके जो सामान्य जिंदगी बसर कर रहीं हैं ,उठा पटक से दूर ।
इस अध्ययन को जिसे ब्रेन जर्नल में जगह मिली है स्वीडन के रिसर्चरों ने आगे बढाया है .पता चला है ,स्ट्रेस और एंग्जाय -टी की बारहा वापसी ,पुनरावृत्ति अल्झाइमर्स के जोखिम को दो गुना बढा देती है .गौर तलब है "डिमेंशिया"की यह आम वजह ,आम किस्म भी बना रहा है .आप जानतें हैं इस मानसिक रोग में दिमाग सिकुड़ कर छोटा होने लगता है .मस्तिष्क का अप -विकासात्मक (डि -जेंरेतिव- डिजीज )रोग है यह जो व्यक्ति की सोचने की याद रखने की (ख़ास कर शोर्ट टर्म मेमोरी )और सामान्य व्यवहार की क्षमता को ले बैठता है .
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