न्यू -ब्लड सेल्स डिस्कवर्ड (मुंबईमिरर ,अगस्त १९ ,२०१० ,पृष्ठ२८ )।
पुर्तगाली साइंसदानों ने ऐसी अभिनव व्हाईट ब्लड सेल्स का पता लगाया है जो प्रत्यारोपित अंग को इम्यूनो -सप्रेसेंत दवाओं के बिना भी इम्यून सिस्टम से स्वीकृति दिलवा सकतीं हैं .हम जानतें हैं अंग प्रत्यारोपण के बाद मरीज़ को ता -उम्र इम्यूनो -सप्रेसेंत दवाओं पर निर्भर रहना पड़ता है और तब भी लेदेकर कामयाबी की दर १०० फीसद नहीं रहती अंग बहिष्करण का इम्यून -सिस्टम द्वारा ख़तरा बना रहता है .वास्तव में यह दो -धारी तलवार पर चलने के समान है -एक तरफ खतरनाक इम्यून रेस्पोंस को रोकना ज़रूरी होता है ताकि प्रत्यारोपित अंग काम करता रहे दूसरी तरफ रोग -प्रति -रोधी तंत्र की धार को भी शेष रोगों से जूझने लायक बनाए रहना भी उतना ही आवश्यक होता है .शमित क्षेत्र की हदबंदी भी ज़रूरी रहती है .
पुर्त गाली साइंसदान मारिया मोंटिरो तथा लुईस गरचा के अन्वेषणों से कम से कम लीवर ट्रांसप्लांट के मामले में एक उम्मीद ज़रूर बंधी है ।
विज्ञान पत्रिका "इम्युनोलोजी "में इनका अन्वेषण प्रकाशित हुआ है .यकृत प्रत्यारोप को स्वीकृति दिलवाने के प्रति आश्वस्त करतीं हैं इनके द्वारा अन्वेषित और नामित व्हाईट ब्लड सेल्स "एन के टी रेग "(रेग संक्षिप्त रूप है रेग्युलेरी का यहाँ पर )।
पता चला है एक बार एक्टिवेट कर दिए जाने के बाद ये कोशायें सीधे यकृत में पहुंचकर उसके गिर्द किसी भी प्रकार की इम्यून रेस्पोंस को शमित (सप्रेस कर )बे -असर कर देतीं हैं .लेकिन शेष अंगों के लिए रोग -प्रति -रोधी तंत्र फिर भी पहले की तरह ही मुस्तैदी से काम करता रहता है .ये कोशायें एक" इम्यूनो -टोल्रेंट -ओर्गेंन "रचतीं हैं .इसके बाद किसी भी तरह का टिश्यु ग्राफ्ट लगाया जा सकता है .किसी भी जीन को एक्सप्रेस किया जा सकता है ,जिसकी वहां ज़रुरत हो (प्रत्यारोप के गिर्द )।
ये साइंसदान ऐसे चूहों का अध्ययन कर रहेथे जिन्हें कई ऑटो -इम्यून डिसीज़ से सुरक्षा मुहैया करवाई जा रही थी तभी इनकी इन ख़ास वाईट सेल्स पर नजर पड़ी ।
बेशक यकृत प्रत्यारोप के मामलों में प्रत्यारोप को अब पहले की बनिस्पत ज्यादा कामयाबी मिली है रोग -प्रति -रोधी तंत्र से स्वीकृति के मामलों में लेकिन यकृत के कामयाबी के साथ१५ सालों तक काम करते रहने की कामयाबी दर अभी भी ५८ फीसद पर आकर ठहर गई है .यहाँ भी १० -१५ फीसद मामलों में रोग प्रति -रोधी तंत्र प्रत्यारोप को बहिष्कृत (रिजेक्ट )कर देता है ,विजातीय ही मानता समझता है .अपना नहीं पाता .
अलावा इसके रोग -प्रति -रोधी तंत्र का शमन करने वाली इम्यूनो -सप्रेसेंत दवाएं खासी महंगी होने के साथ साथ जीवन -प्रत्याशा (लाइफ एक्सपें -टेंसी )को भी कम करती हैं क्योंकि मरीज़ के लिए कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है ,घातक संक्रमण का जोखिम भी बहुत बढ़ जाता है ।
यदिमाइसकी तरह "एनकेटी रेग "कोशायें मनुष्यों पर भी असर दिखातीं हैं तब इन परेशानियों से निजात संभव है आस यही बंधाई गई है ।ना सिर्फ ऐसा ही होगा एन के टी रेग कोशाओं के संग अन्य रोग -रोधी तंत्र का शमन करने वाली दवाओं की भी कमसे कम ज़रुरत पड़ेगी .प्रत्यारोप को १०० फीसद स्वीकृति भी मिले ,शेष रोगों के प्रति -इम्यून सिस्टम की असरकारी भी बनी रहे यही अंतिम लक्ष्य है .सबसे महत्त्व पूर्ण काम है इम्यूनो -सप्रेसेंत एरिया को सीमित रखना, कन्टेन किये रहना .मनुष्यों पर पड़ताल होना बाकी है .
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