गुरुवार, 5 अगस्त 2010

अपना घर फिर अपना घर है -घोंघे भी ढूंढ लेते हैं जिसे

स्नैल्स हेव होमिंग इंस्टिंक्ट (साइंस -टेक /मुंबई ,मिरर ,अगस्त ५ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
एक शौकिया साइंसदान ने अपने प्रेक्षणों से पता लगाया है ,घोंघे भी अपना घर ढूंढ लेतें हैं .एक्सेटर यूनिवर्सिटी के डॉ दावे होद्ग्सों(होजसन ) ने अपने प्रयोगों से उक्त निष्कर्ष निकाला है ।
हुआ यूं रुथ ब्रूक्स अपने किचिन गार्डन को तहस नहस करने वाले घोंघों को बारहा नजदीकी वैस्त्लैंड(बेकार पड़े मैदान ) तक पहुंचा देती थी और ये घोंघे बारहा उनकी बगीची में लौट आते थे .आजिज़ आचुकी थीं आप घोंघों की होमिंग इंस्टिंक्ट से .अब तक यही समझा जाता था घोंघे एक दम से सीधे साधे प्राणी होतें हैं .लेकिन साहिब अपना घर फिर अपना घर होता है ,घोंघे भी पहचानते हैं ।
प्रयोगों को दोहराया गया .ब्रुक और होजसन ने पता लगाया घोंघे दस मीटर तक की दूरी से बारहा लौट आतें हैं अलबत्ता दस मीटर से ज्यादा दूर लेजाकर छोड़ने पर वह ऐसा नहीं कर पातें हैं ।
होजसन ने एक नॅशनल "स्नेल स्वाप"कार्यक्रम प्रायोगिक तौर पर चलाया है .इस प्रयोग में शिरकत करने वाले आम जन अपने घोंघों की निशाँ देही नैल वार्निश से करके एक बाल्टी में रख देंगें .अब बाल्टियों की आपसमे अदला बदली कर ली जायेगी है .जायजा लिया जाएगा घोंघों के व्यवहार का .नतीजे प्रतीक्षित हैं .

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