आलस्य सिर्फ आदतन नहीं होता ,माहिरों के अनुसार यह अपने आपमें एक रोग है (अवसाद की तरह स्वतंत्र रोग ,किसी और रोग का आनुषांगिक लक्षण मात्र नहीं है )।
इम्पीरिअल एवं यूनिवर्सिटीकोलिज , लन्दन के चिकित्सा माहिरों की, सेहत के करता धर्ताओं की एक टोली ऐसा ही मानती है . बकौल इनके वृहद् सम्बन्ध रहा है ,दांत काटी रोटी रही है यारी दोस्ती रही है तगड़ी इन -एक -टी -विटीऔर खराब सेहत की .इस अंतर सम्बन्ध की आप अनदेखी नहीं कर सकते .दोनों निष्क्रियता और बुरी सेहत एक दूसरे का पोषण करतीं हैं .सहजीवन है दोनों का ।
मृत्यु और रुगड़त़ा(मोर्तेलिती और मोरबी -डीटी ) की दुर्भि- संधि रही है आलस्य और प्रमाद के संग .फिर क्यों ना इन्हें एक स्वतंत्र रोग का दर्जा दे दिया जाए .यह मंतव्य व्यक्त किया है रिचर्ड वेइलर ने .आप इम्पीरिअल कोलिज लन्दन से सम्बद्ध हैं ।
बकौल आपके विश्व -स्वास्थ्य संगठन "ओबेसिटी "मोटापे को पहले ही एक स्वतन्त्र रोग का दर्जा दे चुका है .जबकि इसके मूल में इन -एक -टी -विटी ही तो मौजूद रहती है ।
लोग ज़रूरी कसरत नहीं करतें हैं ।
ओबेसिटी ,डायबिटीज़ ,हाई -पर -टेंशन ,हृद रोगों के प्रबंधन और इलाज़ पर ताबड़ तोड़ पैसा खर्च करतें हैं लोग लेकिन इसके बुनियादी कारणों पर नजर ही नहीं डालते ।
हालिया अध्ययन पुष्ट करतें हैं, लेदेकर, २० में से एक व्यक्ति ही ज़रूरी (न्यूनतम रिक -मन -डिड )व्यायाम करता है कोई समेकित योजना या तैयारी नहीं है बीश्वीं शती की इस बीमारी ।"आलस्य और प्रमाद ,लेज़िनेस '"से निपटने की ।
ब्रिटेन के स्पोर्ट्स मेडिसन जर्नलमें इस अध्ययन के नतीजे छपें हैं .
गुरुवार, 12 अगस्त 2010
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