गुरुवार, 5 अगस्त 2010

ऑटो -इम्म्युं डिजीज है -रियुमेतिक -आर्थ -राइटिस

आर्थ -राइटिस की ही एक किस्म है "रियुमेतिक आर्थ -राइटिस ".जोड़ों के दर्दका खतरनाक दर्द , एंठन ,विकृति ,सूजन ,अकडन,कडापन और आखिर में जोड़ को क्षति ग्रस्त कर ले बैठना इसके लक्षणों में शुमार है .इन ए लाइन इट काज़िज़ वैस्तेज़ ऑफ़ जोइंट्स ,स्माल एंड बिग ।
ऊँगलियाँ और कलाई अकसर इसके निशाने पर आतीं हैं .शुरुआत बिग टो से हो या कहीं और से इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।
२५ -५५ साला लोग इसके निशाने पर आजातें हैं .अलबता औरतों को मर्दों से ज्यादा आ घेरता है यह ला -इलाज़ रोग जिसे आम भाषा में गठिया भी कह दिया जाता है ।
अपनी गंभीर अवस्था में यह ता -उम्र का रोग बन जाता है .बीच बीच में रेमिशन के पीरियड्स रोग की कम गंभीर अवस्था में देखे जा सकतें हैं .लेकिन नुकसानी इस दरमियान भी अंदर खाने चलती रहती है यही सबसे दुर्भाग्य -पूर्ण पक्ष है इस बीमारी का .
यह एक ऑटो -इमम्युन डिजीज है .जिसमे शरीर अपने पराये की पहचान भूलकर अपने ही ऊतकों को निशाने पर ले लेता है .
नेत्रों ,मुख और फेफड़ों को भी असर ग्रस्त करसकता है यह रोग .अकसर कुसूर वार होतें हैं -जींस (खानदानी जीवन खंड ,जीवन इकाइयां ,आनुवंशिक विरासत ).पर्यावरण और हारमोन भी इसकी वजह बन सकतें हैं .(तनाव तो हमारे पर्यावरण रहनी सहनी का एक घटक ही बनके रह गया है .वह भी तो अपना असर दिखाता है ।).
अलबत्ता दवाएं और शल्य रोग की उग्रता को कम कर सकतें हैं ,रफ्तार को थोड़ा थाम सकतें हैं .जोड़ों की नुकसानी को रोक सकती है सर्जरी .दर्द से राहत भी दिलवा सकती है लेकिन वैकल्पिक चिकित्सा आयुर्वेद और योग का अपना असर पड़ता है रोग की आक्रामकता पर .साइको -सोमातिक डिजीज भी है जोड़ों का दर्द,मन से काया में आने वाला एक लाइलाज रोग है यह .जब आदमी थक हार जाता है -जोड़ कहता है -तू निश्चिन्त रह मैं जिम्मा लेता हूँ .मैं चुकाउंगा कीमत .

कोई टिप्पणी नहीं: