शनिवार, 7 अगस्त 2010

क्या है वाटर रिटेंशन ?

कभी कभार आपने देखा होगा सुबह उठते ही आपकी आँखें सूजी सूजी (पफी ),थैलियाँ सी लटकी नजर आतीं हैं आपकी आँखों के नीचे?रात होते होते आपके टखने भी सूजने लगतें हैं .?बाकी दिनों में भी आपको अपना शरीर कष्टकर और फूला फूला नजर आता है ?यू फील ब्लोटिद आल ओवर .इन लक्षणों का बुनियादी सम्बन्ध आपके शरीर में जल के स्तर से है .आखिर ७० फीसद अंशभार हमारे शरीर का जलीय ही तो है .नदी समुन्दर के किनारे हमें इसीलिए भाते लुभातें हैं .हमारी प्रकृति के नजदीक जो हैं ।
चय -अपचयन (मेटाबोलिज्म )की तमाम प्रक्रियाओं के लिए हमें जल चाहिए .ये जो हमारा कोशाओं का महल है ,शरीर है, इसकी हर कोशा के भीतर और बाहर जल है ।जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है .
वाटर -रिटेंसन (इडिमा)वह स्थिति है जिसमे जल रक्त वाहिकाओं (ब्लड वेसिल्स )से रिसकर ऊतकों(टिश्यूज ) तक आने लगता है . शरीर की चय -अपचयन क्रियाएं(मेटाबोलिज्म ) हारमोनों पर बेहद आश्रित रहतीं हैं .बेहद असरग्रस्त भी होतीं हैं हारमोंस से ।
यही वजह है औरतों को अपनीपूरी प्रजनन क्षम अवधि (फर्टिलिटी पीरियड )में हारमोनों की उछाल और घट -बढ़ की वजह से ब्लोटिंग या ईडीमा से दो चार होना पड़ता है ।
कब पैदा होती है रोगात्मक स्थिति ?रोग के लक्ष्ण प्रकट होतें हैं ?कब चेत जाना चाहिए ?वार्निंग साइंस ऑफ़ डिजीज हैं क्या ?
अति विकट स्थिति में .अट एन एक्सट्रीम लेविल ,ईडीमा हार्ट प्रोब्लेम्स का सिग्नल है ,साफ़ साफ इशारा है यकृत सम्बन्धी बीमारियों का ,गुर्दों से जुडी गडबडियों का ,पोषण सम्बन्धी कमी बेशी (कुपोषण,अल्प -पोषण )
या फिर हाइपो -थाई -रोइदिज़्मका ।
गौर कीजिये -दम तो नहीं फूलती आपकी ?बेदम तो नहीं होते आप कठोर श्रम के बाद या फिर बैठे बैठे भी ?
आलस्य और प्रमाद आपको घेरे रहता है ?कमजोरी तो महसूस नहीं करते आप ?रन डाउन फीलिंग घेरे रहती है ?पेशाब कम आता है ?चेहरा मोहरा सोजिश लिए रहता है ?
तीन चरण हैं ईडीमा के ,गौर कीजिये .थ्री स्टेज -इज ऑफ़ ईडीमा :वाटर रिटेंशन की समस्या प्री -मेन्स्त्र्युअल् फेज़ में भी हर माह आ सकती है .गर्भावस्था दूसरा चरण है और रजोनिवृत्ति (मिनो -पोज़ )तीसरा ।
दी प्री -मेन्स्त्रुअल सिंड्रोम(पी एम् एस ) :मासिक पूर्व संलक्षण ,क्यों आ घेरतें हैं ये कष्टकर लक्षण ?
मासिक चक्र का यह बाद का दूसरा आधा हिस्सा होता है जब कुछ स्त्री हारमोन और दिमाग में बनने वाले कुछ जैव -रसायनों की परस्पर क्रिया -प्रति -क्रिया से पी एम् एस के लक्षण कुछ महिलाओं को आ घेरतें हैं .मासिक चक्र के दूसरे हिस्से में चिड -चिडाहट (इर्रितेबिलिती) और वाटर -रिटेंशन की वजह बनता है हारमोन प्रोजेस्ट्रोन जो बाकी सब पर भारी पड़ता है .नतीजा होता है ,वेट गैन(वजन में बढ़ोतरी का एहसास ),टेंडर ब्रेस्ट (ब्रेस्ट हेविनेस ),दर्द और सोजिश (सूजन )टखनों की ,शरीर का आमतौर पर भी फूला फूला दिखना .मासिक रक्त स्राव के बाद यह लक्षण भी गायब हो जातें हैं .
ट्रीटमेंट :बेशक कुछ हालिया ओरल कोंतरासेप्तिवजिनमे इस्ट्रोजन की मात्रा कमतर रहती है ,तथा एक दम से अभिनव प्रोजेस्ट्रोन रहता है जो वाटर रिटेंशन की वजह नहीं बनता है .,इस स्थिति में थोड़ा आराम दे सकता है .इलाज़ कोई नहीं है .अलबत्ता एक स्वस्थ जीवन शैली ,दैनिकी में व्यायाम को जगह देना तथा मेडिटेशन सदैव ही राहत देता है .
ड्यूरिंग प्रग्नेंसी :ए वोमेन्स हारमोंस रेज़ ड्यूरिंग प्रग्नेंसी ...
ह्यूमेन कोरियोनिक गोनाडो -त्रोफिन(एच सी जी ),प्रोजेस्ट्रोन ,इस्ट्रोजन ,प्रोलेकतिन ,स्तीरोइड्स सभी का तो सैलाब होता है गर्भावस्था में .अलावा इसके औरत के शरीर को बच्चे को जगह देने के लिए सामान्य से पचास फीसद खून और तरलज्यादा बनाने पडतें हैं .गर्भावस्था में२५ % वजन बढाने में फ्लुइड रिटेंशन का ही हाथ रहता है .बढ़ोतरी करता हुआ भ्रूण पेट की गुरुतर वीन्स(बिग वीन्स ऑफ़ दी टामी) पर दवाब डालता है .इन रुधिर - वाहिनियों के दबने से दिल तक पूरी रक्तापूर्ति नहीं हो पाती है .नतीज़न लेग्स की ओर रक्त का ज़मा होना ज़ारी रहता है .गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में (सांतवें माह से या कभी कभार ओर भी पहले )ऐसा होना आम बात है .शरीर पर सोजिश छा जाती है ।
ट्रीटमेंट :यह सब होना स्वाभाविक समझा जाता है .अलबत्ता कुछ हिदायतों का पालन किया जा सकता है .पैर लटका कर ज्यादा देर तक ना बैठा जाए .बिस्तर पर लेटते वक्त पैरो के नीचे तकिया रखा जाए .देर तक खड़े होकर काम ना किया जाए .रसोई में ऊंचे स्टूल का (लाईब्रेरियन स्टूल )का स्तेमाल किया जा सकता है ।
कोई दवा दारु ज़रूरी नहीं .अलबत्ता नमक ज्यादा ना प्रयोग किया जाए ।लेकिन -
इडिमा के साथ हाई -पर -टेंशन की अनदेखी ना की जाए .स्त्री रोग विद की सलाह मानी जाए किसी और की नहीं .
पोस्ट मीनों -पोज़ :रजोनिवृत्त होने पर इस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन का स्तर छीजने लगता है .इसी के साथ प्रजनन तंत्र ,मूत्र तंत्र (यूरिनरी सिस्टम)रक्त वाहिकाओं ,अस्थियों ,ह्रदय ,चमड़ी और औरत के भाव जगत में बदलाव आने लगतें हैं .वाटर रिटेंशन और मेटाबोलिक रेट्स (रेट ऑफ़ बर्निंग केलोरीज़ बाई दी बॉडी )के घट जाने से औरत का वजन भी बढ़ने लगता है ।
ट्रीटमेंट :मिनोपोज़ वाटर रिटेंशन हानिरहित होता है .लेकिन झुंझलाहट की वजह बनता है .हारमोन रिप्लेसमेंट थिरेपी समाधान नहीं है .मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की ,उक्ति चर्तार्थ होती है हारमोन प्रति -स्थापन चिकित्सा करवाने से ।
नियमित व्यायाम अच्छी (हेल्दी डाईट) खुराख का फायदा है .अलबत्ता सुनिश्चित कर लीजिये आप स्वस्थ तो हैं ?कोई अंडरलाइंग मेडिकल कंडीशन तो नहीं है ?
सन्दर्भ -सामिग्री :-फील वाटर -लोग्गद?गाइनेकोलोजिस्ट डॉ सुमन बिजलानी टेल्स यू हाउ टू बेटिल दी ब्लोटिंग काज़्द बाई वाटर रिटेंशन (यू /मुंबई मिरर अगस्त ६ ,२०१० ,पृष्ठ २८ )

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