गुरुवार, 5 अगस्त 2010

सिगरेट छोडनी है तो दिमाग पे जोर डालिए

ग़ालिब साहिब ने कहा था -इश्क पे जोर नहीं, है, ये वो ,आतिश, ग़ालिब ,जो लगाए ना लगे और बुझाए ना बने ।
यही बात धूम्र -पान पर भी लागू होती है .किसी ने खूब कहा था -यु कैन स्मोक एज लॉन्ग एज यु डोंट एग्जैल.अपने फेफड़े तो फिर भी फुंकेंगें,स्कारिंग होगी लंग्स की .कोई समाधान ?
स्मोकर्स कैन कंट्रोल क्रेविंग्स बाई ट्रेनिंग देयर ब्रैनस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,अगस्त ५ ,२०१० ,पृष्ठ २५ )
आपको अपने दिमाग को सीख देनी होगी .फिर आप जानतें ही हैं -"करत करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान ,रसरी आवत जात के सिल पर पड़त निसान ।"
याले यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पता लगाया है इस एवज़ धूम्र्पानियों को सिगरेट से होने वाली नुकसानी के बारे में सोचते रहना होगा .बताना होगा दिलो -दिमाग को दीर्घावधि क्या क्या नुकसानी उठानी पड़ सकती है स्मोकिंग की लत से .अपने ज़ज्बातों को काबू में कर सिगरेट की तलब को मारना दबाना होगा .बार बार .सारा खेल तर्क का है ।फंक्शनल मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग का स्तेमाल करते हुए रिसर्चरों ने २१ स्मोकर्स के ब्रैनस का अध्धय्यन किया है .इस दौरान इन्हें सिगरेट्स और खाद्य के बिम्ब दिखलाए गये .सिगरेट की गुलामी करने के दीर्घावधि रिनात्मक सेहत के प्रतिकूल , प्रभावों के बारे में इन्हें सोचने के लिए कहा गया .धूम्र पानियों ने जब अपनी तलब पर रोक लगाई ,इनके दिमाग का एक हिस्सा आंशिक रूप से रोशन हो उठा .यह हिस्सा संवेगों से ताल्लुक रखता है .जबकि तलब से ताल्लुक रखने वाले हिस्से शमित रहे .रोशन ही नहीं हुए ।
तो ज़नाब -करत करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान .....सिगरेट छोड़ना कौन बड़ी बात है .जहां चाह ,वहां राह .

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