शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

पैसे से तमाम खुशियाँ नहीं खरीदी जा सकतीं ....

"मनी कांट बाई कम्प्लीट हेपीनेस "(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई ०२ ,२०१० )
पैसा पैसा और पैसा हवस कमनहीं होती .तमाम भौतिक -सुख -सुविधाएं ,फेसिलितीज़ पैसा भले ही जुटा ले पूरी ख़ुशी नहीं बटोर -खरीद सकता .एक नवीन अध्धय्यन का यही सार है ।
बेशल सुरक्षा की भावना और आय में इजाफा कर सकता है पैसा .कहा भी गया है "पैसा पैसे को खरीद सकता है ,खरीदता है .सुरक्षा के एहसास को ज़रूर बढा देता है पैसा ।
लेकिन "देयर इज नो सच असोशिएसन बिटवीन मनी एंड फन "
ज़िन्दगी का मजा कुछ और है .पैसे का उससे कोई लेना देना नहीं है ।
एक आलमी (ग्लोबल )गेल़प पोल के अध्धय्यन विसलेसन से यही ध्वनित हुआ है ,मुखरित हुआ है ।
असली मुद्दा पोजिटिव फीलिंग्स से जुड़ा है .आपकी लोग कितनी इज्ज़त करतें हैं ,कितनी तवज्जो मिलती है आप को दिल से ?क्या आप आज़ाद महसूस करतें हैं .आज़ाद ख़याल हैं ?जॉब सेतिस्फेक्सन कितनी है ?आपका काम आपको भाता ,सुहाता भी है ? या फिर "सब चलता है "वाला एतित्युद है ."आर यु जस्ट स्टे -इंग ओंन दिस प्लेनेट ,और लिविंग तू "?

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