एक गाना है फ़िल्मी "धूप में निकला करो ना रूप की रानी के गोरा रंग काला हो जाएगा "रोमांस के अलावा कुछ तो सौन्दर्य -विज्ञान है ही इस गीत में बस एक जुमलाऔर जड़ दीजिये "गोरा बनाने वाली क्रीम लगा कर धूप में .....
हाँ अगर गौरा बनाने वाली (फेयर -नेस क्रीम )क्रीम को यदि सन -ब्लोक के साथ मिलाकर बनाया गया है ,तो और बात होगी ।
यानी धूप में जाया जा सकता है .आखिर क्यों ?क्या फर्क आजाता है सन ब्लोक के संग साथ फेयरनेस क्रीम फोर्म्युलेसन में ?
वास्तव में फेयरनेस एजेंट्स चमड़ी पर मलने के बाद त्वचा सौर -विकिरण के हानिकारक परा -बैजनी अंश (अल्ट्रा -वायलेट फ्रेक्सन )के प्रति ज्यादा संवेदी (सेंसिटिव )हो जाती है ।
जिन फेयरनेस एजेंट्स को (गोरा बनाने वाली क्रीमों )को सन ब्लोक से संयुक्त नहीं किया जाता है उन्हें लगाकर धूप में आजाना त्वचाको बेहद "सन सेंसिटिव "बना देता है ।
काले और गोरे रंग में फर्क सिर्फ एक रंजक (पिगमेंट )मेलेनिन का है जो चमड़ी की अंदरूनी परतों में पया जाता है ।
बेहूदा है गोरे -काले का रंग भेद .इसका बाहुल्य चमड़ी को बेहद काला और कमी बेशी बेहद की एल्बिनो बना सकती है .गोरा कोई बहुत श्रेष्ठ प्राणी और काला दोयम दर्जा नहीं है ।
आपके भौगोलिक आवास का खेला है ।
ऐसे अनेक सौन्दर्य उत्पाद हैं जो काली चमड़ी की कलौंच को कम कर सकतें हैं .मेलेनिन के बन ने को कम या उसके चमड़ी के नीचे ज़माव को रोक सकतें हैं .विरंजक तो चमड़ी का रंग ही ले उड़ तें हैं ,रासायिक प्रतिकिर्या रंगत ही तब्दील कर डालती है चमड़ी की ।
सौन्दर्यन प्रशाधनों में स्तेमाल कुछ रसायन चमड़ी की बाहरी परत ही ले उड़ तें हैं ,अधि -चर्म (निचली परत झांकने लगती है ।
बेशक सन स्क्रीन त्वचा को परा -बैंजनी विकिरण के प्रभाव से बचा गहरा काला होने से रोक्तें हैं .लेकिन गुजिस्ता बरसों में इनमे प्रयुक्त कई रसायनके दुष्प्रभाव सामने आने पर प्रतिबंधित भी हुएँ हैं ,जैसे मरकरी जिसे अब अल्पांश में ही फेयरनेस क्रीम अपना रहीं हैं .इसके पार्श्व प्रभावों में एलर्जी से लेकर किडनी फेलियोर तक देखें गयें हैं .इसीलिए अन्य रसायनों के संग अब सन ब्लोक एक आदरणीय स्थान बना रहा है फेयरनेस क्रीमों में .
शुक्रवार, 9 जुलाई 2010
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