गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

व्यंग्य -विडंबन :चैनल वालों की मौज है .

आज से इस नै श्रृंखला का आगाज़ हो रहा है "गेस्ट कोलम "के रूप में .व्यंग्य कार हैं :डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश "पूर्व सीनियर फेलो संस्कृति मंत्रालय ,भारत सरकार .शब्दालोक -१२१८ ,सेक्टर -४ ,अर्बन एस्टेट ,गुरगांव ,दूर ध्वनी :०१२४ -४०७७२१८ ।

चैनल वालों की मौज :

चैनल वालों की मौज है .यकीन ना हो तो कहीं भी रिमोट घुमाकर देख लीजिये .ऐसा इंद्र लोक कहाँ मिलेगा .सभी मज़े में हैं .अंदर भी और बाहर भी .तभी तो सार्वजनिक तौर पर कह रहें हैं -मजा नहीं दोगे !उम्र का कोई बंधन नहीं .थिरकते बदन मटकते कूल्हे ,अधखुली छतियां ,थरथराते होंठ ,धडकते दिल ,बे -चैन जफ्फियाँ ,उठती सीत्कारें ,बजती तालियाँ ,तबले पर पडती थापें और ड्रम की ताल पर खिसकते कपड़े .यह गया गुलाबी ,पीला भी गया ,यह गया लाल ,नीला भी गया ,यह गया नारंगी .भगवे की तो औकात ही क्या है ?अब रह भी क्या गया है जिस्म पर .जिस्म का रंग ही तो बाकी है .वह भी उतरने को तैयार .ऐसी जवान पीढ़ी है भला किसी देश में ?सभी नाच रहें हैं .महासंग्राम छिड़ा है .कुछ नचनियां तो संसद भी हो आयें हैं .कुछ ठहाके लगा रहें हैं .यहाँ सभी मटुकनाथ हैं .कितना प्रगति शील लोकतंत्र है .कुछ भी अदृशय नहीं .कुछ भी अश्रव्य नहीं .सभी को आज़ादी है !सच्चा जनवाद है .जोडियाँ बन रहीं हैं .स्वयम्वर सज रहें हैं .फिर ऐसे अवसर कहाँ ?बस "नच बलिये "।

कैसे भी नच .पर ,नच ज़रूर .यह तो नचने का ब्रह्मांडीय मुकाबला है .इसमें किसी को फूहडपन झलकता है तो सौ बार झलके .हमारी बला से !हम क्या कर सकतें हैं .हम ठहरे कलाकार .कला पर प्रतिबन्ध कैसा ?

चाहे कैट वाल्क करें ,चाहे दाग वाल्क करें या फिर केमिल वाल्क !हमारी मर्जी .इसमें आपका क्या जाता है ?यह ग्लोबल डांस है .चैनल ही चैनल हैं .स्वर्ग में बैठी अप्सराएं भी चैनलों पर उतरने को आतुर हो रहीं हैं !कई तो वेश बदल कर आ भी चुकीं हैं .पर यहाँ आकर भौचक्क हैं .ऐसा अलौकिक सौन्दर्य देख कर तो अपने अप्सरा होने शर्मिंदा हैं .मुनि गन ना कहते थे ,देवता भी भारत आने को तरसतें हैं .तो कहाँ जायेंगें जब सारी अप्सराएं यहाँ आकर .मच बलिये 'करेंगीं तो देवता क्या स्वर्ग में बैठ कर चूल्हा फून्केंगें ?फिर वहां तो गैस भी नहीं मिलती .यहाँ ब्लेक पर मिल तो जाती है ,भले ही सिलिंडर में कम हो .अब देवताओं का स्वर्ग में क्या काम है ?काम तो खैर उनका यहाँ भी नहीं है .वोट तो उनका है नहीं .इन देवताओं से तो बांग्ला देशी ही अच्छे ,कमसे कम उनका वोट तो है ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

2 टिप्‍पणियां:

Pratik Maheshwari ने कहा…

तीखी व्यंग्य..
बहुत अच्छा..

virendra sharma ने कहा…

shukriyaa zanaab .
veerubhai .