रंजिश हो रही है पुलिस कर्मी को "पुलिसिया "और मास्साहिब (मास्टरजी ,गुरूजी ,टीचर जी )को मास्टर कहने में लेकिन आम फ़हम प्रयोग करने को हम मजबूर हैं .एक मर्तबा फिर स्कूल में बच्चों के साथ होने वाली जानवरों जैसी मारपीट ने ,कोर्पोरल पनिशमेंट ने हिन्दुस्तान को अपने से मुखातिब किया है उस दुर्घटना ने जो महरूम रोवंजित रावला के साथ घटी थी और जिसके मुजरिमों को पहले हवालात और फिर ज़मानत दे दी गई .और कोई नहीं कोलकाता के नामचीन "ला मार्तिनीयर फॉर बोइज स्कूल "के प्राचार्य और प्राध्यापक इस वारदात के पुर्जे थे ।
कहना ना होगा शारीरिक यातना यार दोस्तों हमजोलियों के सामने टीचर्स द्वारा दी जाने वाली ,एक मानसिक जख्म बाल मन के दिलो -दिमाग पर उम्र भर के लिए छोड़ जाती है ।
क्या ऐसा करके आप एक क्रूर स्कूल -सर्कस का साक्षी नहीं बना रहें हैं किशोर -किशोरियों को ?क्या आप उनके मनो -विज्ञान से ना -वाकिफ हैं ?पुलिसियों की तरह क्या हमारे टीचर साहिबानों को भी सेंसि -टा -इज करने के लिए प्रशिक्षण की ज़रुरत नहीं है ?
रेगिंग से ज्यादा खतरनाक है यह 'स्कूल में दिया जाने वाला कोर्पोरल पनिशमेंट '.यहाँ आये दिन एक रावला इस का शिकार होता है और किसी को कानों -कान खबर नहीं होती ।
हमारा अपना अनुभव बतौर कोलिज टीचर यह रहा है "किशोर मन अपने टीचर में "एक दोस्त एक कोई बहुत अपना सा राजदान ढूंढता है ,एक कोंसेलर ढूंढता है जिससे वह अपनी मेह्रूमियात ,दुःख दर्द ,कही अनकही कह सके .टीचर से नहीं कहेगा तो किस से कहेगा .घर में तो पर्दा दारी है ,फासला है ,वक्त नहीं है किसी के पास किशोर -किशोरियों के साथ सहभागी होने का ।
लेकिन ऐसा तभी होगा जब शिक्षक ज्ञानवान होगा ,एन -साईं -कलो -पीडिया होगा दुनिया भर की जानकारी का .विकी -पीडिया बन -ना होगा टीचर को .हमारा मानना है डंडा उठाना ,कैसा भी भय दिखला ना अपनी कमजोरी को छिपाए रखना है ।
फक्र से कहते हैं कई स्कूल "कोर्पोरल पनिशमेंट हमारी समृद्ध संवर्धित परम्परा का हिस्सा रहा आया है ,रहेगा "।
हमारा मानना है इसका संज्ञान लिया जाना चाहिए .ऐसे स्कूल को डी -रीक्ग - ना -इज किया जाना चाहिए .शैक्षिक सुधारों का एहम हिस्सा बनाया जाना चाहिए "कोर्पोरल पनिशमेंट के उन्मूलन को ".वगरना "रोवंजित "की" आत्म -ह्त्या "का सिलसिला ज़ारी रहेगा .
गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें