शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

व्यंग्य -विडंबन :यह मेरी इंडिया है !

व्यंग्य -विडंबन :यह मेरी इंडिया है !
यह मेरी इंडिया है .हाय !कितनी अच्छी !कितनी प्यारी !!सो स्वीट !!!आपको एतराज़ है क्या ?कोई दादागिरी है क्या ,जो मेरा कहना पड़े .भारत होता तो 'मेरा 'कह देते ,पर यह तो इंडिया है .नितांत सेक्युलर .यही तो सुविधा है .स्त्रीलिंग और पुल्लिंग का कोई भेद है ही नहीं .फिर सभी तो सेक्युलर हैं .घोर मजहबी से लेकर अनीश्वरवादी ,यहाँ तक की राष्ट्र विरोधी हत्यारे भी सेक्युलर हैं .यह कोई संकीर्ण शब्द तो है नहीं .सेक्युलर तो विराट और भव्य शब्द है .सभी को इसका सहारा है -चाहे चाराखोर हो या फिर चाराचोर .फिर अपनी आपनी पसंद भी तो है .जाकी रही भावना जैसी .यहाँ कोई सर्वखाप पंचायत तो है नहीं ,फिर डर किस बात का ?अब चाहे रिश्ते को जैसा महसूसो ,समझो और बरतो !चैनल गवाह है कि यह पवित्र प्रेम की बात है !जहां मन लगे ,अड़ जाओ .थोड़ा तेज़ाब डाल देने से पवित्र प्रेम तो मरने से रहा .है कोई रोकने वाला !बड़े आयें हैं 'मेरा भारत -मेरा भारत 'कहने वाले ।
यह मेरी इंडिया है .एक बार नहीं सौ बार कहूंगा -यह मेरी इंडिया है .प्रमाण चाहिए तो चैनल वालों से पूछ लीजिये .उनसे बढ़कर तो कोई है नहीं न !एक से बढ़कर एक .सारे के सारे तेज़ !कोई तो इतने तेज़ हैं कि जो घटित ही नहीं हुआ ,उसे भी सबसे पहले प्रसारित कर देते हैं और वह भी चित्रों सहित .यही तो स्टिंग ओपरेशन है .जनवादी पत्रकारिता है .झख मारकर अघटित को भी घटित होना पड़ता है .यह अनहोनी को भी होनी में तब्दील कर देतें हैं .इनकी महिमा न्यारी है .पुलिस अफसर से लेकर नेताजी तक ,सबकी घिघ्घी बंध जाती है .आखिर इंडिया को तो चैनल वाले ही चलाते हैं न !उनके अंगना में सरकार का क्या काम ?सरकार का तो नाम है .उसके लिए यह घाटे का सौदा भी नहीं है कि बिना कुछ किये उसका नाम होता रहे .फिर सरकार कोई फ़ोकट कि चीज़ तो है नहीं .सरकार तो आखिर सरकार है .उसका अपना रूतबा है .इंडिया चले या न चले ,इससे सरकार का क्या लेना देना !सरकार की मर्जी ,चाहे वह बहरी हो जाए या अंधी ;इससे उसे क्या फर्क पड़ता है .वोट तो यूं भी बहरे -अंधों को ही मिलते हैं न !जो न किसी को देखते हैं न किसी को सुनते हैं .एक की दुर्गति के लिए दूसरी जमात को जिम्मेदार ठहराओ .बस हो गया आपका काम !यही तो लोकतंत्र का सेक्युलर नुस्खा है .यह नुस्खा बड़े काम का है खूब चलता है .फिर सरकार को इन छोटी -मोटी बातों से लेना भी क्या कि इंडिया मेरी है या मेरा है .इस चिकचिक में क्या पड़ा है ?परम्परा को जान ने और संस्कृति को समझने की क्या ज़रुरत है ?इतिहास तो वैसे भी अतीत का मुर्दा है .फिर १९४७ के पहले का इतिहास इंडिया के किस काम का ?तब तो सेक्युलरिज्म भी नहीं था .ऐसा बोदा इतिहास लेकर क्या करेंगे ?बोझ है बोझ !और वह भी ५००० वर्ष पुराना .इसे कौन उठाए ?इंडिया चलाने के लिए यूं भी इन पुरानी चीज़ों की ज़रुरत भी क्या है ?यहाँ तो फ्रेश माल चाहिए .नया विधेयक लाओ .क़ानून बनाओ .जिसे फिट आ जाए ,वही अपराधी है .बाकी सबको आज़ादी है .फिर भले ही वह खतरनाक आतंकवादी क्यों न हो .भाई क़ानून भी तो कोई चीज़ है न !यदि अपराधी भी न बच सके ,तो मानवाधिकार किस काम के ?जो मर खप गये उनका क्या रोना धोना ?सरकार उनकी क्षतिपूर्ती के लिए पैसा देगी .वैसे ही मर जाते तो पैसा भी न मिलता .अब भी शिकायत की कोई गुंजाइश है क्या ?पर ये भारतवासी समझते भी नहीं .हत्यारे के भी तो मानवाधिकार होतें हैं न !सरकार का काम है उन्हें बिरयानी खिलाना .और सरकार अपना फर्ज़ अदा कर रही है .फिर इससे इंडिया के जायके का मुफ्त में प्रचार भी तो होता है न!इंडिया चलाने के लिए ऐसी सेक्युलर समझदारी बहुत ज़रूरी है .इतिहास ,परम्परा ,संस्कृति ,धर्म ,दर्शन ,राष्ट्र-प्रेम और भारत जाए भाअड़ में .अहा !भारत और भाअड़ में कैसा अद्भुत अनुप्रयास है .कैसा विलक्षण वर्णसामय है ?कोई सिद्ध कवि भी 'भारत' और 'भाअड़ 'की ऐसी सुन्दर उद्भावना नहीं कर सकता .इसका श्रेय तो सेक्युलारिस्तों को जाता है न !
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

3 टिप्‍पणियां:

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

यही तो सुविधा है .स्त्रीलिंग और पुल्लिंग का कोई भेद है ही नहीं .फिर सभी तो सेक्युलर हैं .घोर मजहबी से लेकर अनीश्वरवादी ,यहाँ तक की राष्ट्र विरोधी हत्यारे भी सेक्युलर हैं


Karaara vyang. Apne kathy aur uddeshy me puri tarah safal hai yah acticle. Many & many thanks .. kuchh to rang laayega jb aap jaise prahari hain...dil khush ho gaya subah - subah aaiye chaay pr aapka swaagat hai.

virendra sharma ने कहा…

shukriyaa zanaab .
veerubhai .

कविता रावत ने कहा…

आपको एवं आपके परिवार को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें!