आर्कटिक आइस कैप श्रींक्स टू थर्ड लोवेस्ट पॉइंट इन २०१० (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,न्यू -देल्ही अक्टूबर ६ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र की हिम चादर छीज कर २०१० के ग्रीष्म काल में सिमटकर अपने अब तक के तीसरे न्यूनतम स्तर पर आपहुंचीहै .बुरी खबर यह भी है आइन्दा २०-३० सालों के अन्दर ही इस क्षेत्र में ग्रीष्म के दौरान हिम चादर ढूंढें नहीं मिलेगी ।
नेशनल स्नो एंड आइस डाटा सेन्टर (एन एस आई डी सी )कोलाराडो के साइंसदानों ने इसकी वजह इस तमाम क्षेत्र का ग्रीष्म में एक दम से आइस मेल्ट के प्रति अरक्षित होजाना है .यह वल्नारेबिलिती दिनानुदिन बढ़ ही रही है ।
उत्तरी ध्रुवीय सागर की हिम चादर एक चक्र के तहत ग्रीष्म में पिघलकर सिमटती तथा शीत (विंटर ,सर्दी )ऋतु में दोबारा पनपती बनती मुटियाती रही है .लेकिन गत तीस सालों में यह धवल बिछौनाकुलमिलाकर छीजता रहा है.अप्रत्याशित तौर पर चादर झीनी हुई है ।
लाइव साइंस को साइंसदानों ने बतलाया है ,हम वहां जब पहुंचे वह पिघलाव का अंतिम चरण और रिफ्रीज़िंग की शुरुआत थी (सितम्बर १० ,२०१० )लेकिन यह क्या चादर का मुटियाना नहीं, दोबारा छीजना सितम्बर १९ तक ज़ारी रहा ।
इसका मतलब साफ़ है यदि यही सिलसिला ज़ारी रहा ,तो आइन्दा २०-३० सालों में इस इलाके में हिम -आवरण का नामो -निशाँ भी नहीं रहेगा .
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