सोमवार, 9 अगस्त 2010

अनजान अजनबियों से भी जुड़ने को आतुर रहता है हमारा दिमाग

'ह्यूमेन ब्रेन मिमिक अदर एक्सेंट्स '(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,अगस्त ९ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )।
हमारे दिमाग की जन्मजात शिफत एक प्रबल इच्छा अजनबियों से जुड़ने उनका उच्चा -रन बूझने समझने की बनी रहती है .इसीलिए दिमाग अजनबियों के भी स्पीच पेट्रन को जानने समझने की भरपूर कोशिश करता है .
साइंसदानों के मुताबिक़ दिमाग सम्बद्ध होना चाहता है अजनबियों से अंतस मेंअवचेतन में छिपी किसी प्रवृत्ति के तहत भले ही हमें सामने वाले की आवाज़ भी ठीक से सुनाई नहीं दे रही हो और वह विदेशी अन्य भाषा -भाषी ,मज़हबी,ही हो ,हमें अटपटा भीकुछ लग रहा होभले ही .
केलिफोर्निया विश्वविद्यालय रिवरसाइड कैम्पस के साइंसदान ऐसा मानतें हैं हमारा अवचेतन एक्सेंट की नक़ल उतारने को परदेशियों की भी व्यग्र रहता है तो इसकी वजह खुद हमारा दिमाग ही है जिसमे एफिलियेट होने की प्रवृत्ति सहज स्वाभाविक ,जन्मना है .