सोमवार, 12 जुलाई 2010

कैंसर से मुकाबले के लिए सोसलाईट बनिए ....

बिजी सोसल लाइफ होल्ड्स की तू फाइटिंग कैंसर (दी टाईम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई १० ,२०१० )।
एक अध्धय्यन के मुताबिक़ सोसलाइज़िन्ग (सभा -सोसायटीज़ में आपकी शिरकत ,मुखर होना सामाजिक उठ बैठ के मौकों पर )सेहत के अलावा कैंसर से बहादुरी से जूझने में भी मददगार रहती है ।
वास्तव में सामाजिक इन्तेरेक्सन (परस्पर विमर्श में पहल करना ) से पैदा स्ट्रेस (रचनात्मक -दबाब ,तनाव कह सक्तें हैं इसे ) त्युमर्स के आकार को कम करता है .रोग का शमन भी हो सकता है .बेशक आइन्दा फिर लौट आने के लिए ही सही .रेमिशन में चला जा सकता है ट्यूमर .यह कहना है अंतर -राष्ट्रीय माहिरों की एक टीम का ।
अंतर -मुखी बना रहने वाला कैंसर मरीज़ बहिर्मुखी हो अपनी दिनचर्या बदल लोगों के साथ उठ बैठ बढा कर अपनी रोगात्मक स्थिति में बराबर सुधार कर सकता है ।
सिद्ध हुआ है ,मेनेजिबिल स्ट्रेस परम्परा गत सोच के विपरीत शरीर की रोग -प्रति -रोधक क्षमता में इजाफा करती है .चूहों पर संपन्न प्रयोगों से इस बात पर रौशनी पड़ी है ,कैंसर -निदान (कैंसर शिनाख्त )के बाद मरीज़ की जीवन शैली क्या रहे ?
सर्जरी ,किमो -थिरेपी ,रेडियो -थिरेपी से भी बढ़कर असरकारक है मरीज़ का माहौल ,उसके रोजमर्रा के हालात ,रहनी सहनी .सामाजिक और भौतिक दोनों परिवेशों का संवर्धित होना (रिच होना ,हेल्दी -इन्तेरेक्सन मरीज़ का बाकी के साथ )ज्यादा लाभ पहुंचाता है ।
ओहिओ स्टेट यूनिवर्सिटी के मत्ठेव ड्यूरिंग ने प्रयोगों का नेत्रित्व किया है .कैंसर - ग्रस्त चूहों को छोटे समूह से निकाल कर बड़े समूह में ज्यादा स्पेस मुहैया कराने पर उनकी रोगात्मक कंडीसन में बेहद सुधार हुआ .पहले इनके ५ साथी थे अब बीस .इनके त्युमर्स का आकार ७७%घट गया ,५%के त्युमर्स हवा हो गये (गायब सिकुड़ कर )।
बेशक चूहे अब खुले में थे ,खिलोनों के संग लेकिन सोसलाइज़िन्ग का अपना बेहद का असर रहा ।
तफ्तीश करने पर इनमे एक स्ट्रेस से पैदा "ब्रेन -दीरा -इव्द न्युरोत्रोफिक फेक्टर" (प्रोटीन ) ज्यादा पाया गया .तो ज़नाब स्ट्रेस भी प्रोडक्टिव होती है ,रचनात्मक होती है ,ज़रुरत पोजिटिव रहने की है .

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