दरअसल गिरगिट की चमड़ी की बाहरी के ठीक नीचे की परतों में कुछ रंजक (पिगमेंट युक्त )कोशायें होती हैं .इन्हें "क्रोमा -टो-फ़ोर्स "कहा जाता है .क्रोमा शब्द का अर्थ रंग होता है .क्रोमा -टो -फॉर इज ए पिगमेंट कान्टेनिंग सेल इन मेनी एनिमल्स .व्हेन इट एक्स्पेंड्स ऑर कोंत्रेक्ट्स ,काज़िज़ ए चेंज इन दी एनिमल्स स्किन कलरिंग .ओक्तोपस ,स्क्विड ,सम फ्रोग्स एंड लिजार्ड्स कन्टेन दीज़ सेल्स ।"
गिरगिट की चमड़ी की इन ख़ास कोशाओं की सबसे ऊपरी परत लाल और पीत(पीला )वर्ण लिए रहती है .जबकि निचली परत" इरी-डॉ -फॉर" नीला ,सफ़ेद रंजक लिए रहती है ।
ज्यादातर गिरगिट लाल ,कथ्थई (ब्राउन ),और ग्रे रंगों की नुमाइश लगातें हैं .इन्हीं रंगों का प्रदर्शन करतें हैं .अलबत्ता हरेक प्रजाति एक कलर रेंज के भीतर ही रंगों का प्रदर्शन करती है .सभी रंग सभी प्रजातियों के पास कभी नहीं होतें हैं ।
सवाल असल यह है गिरगिट रंग कब बदलता है ?किसके आदेश से बदलता है ?
गिरगिट का दिमाग इन कोशाओं को संकेत भेजता है ,ख़तरा भांप कर ,कोशायें इसी के अनुरूप फैलने सिकुड़ने लगतीं हैं .बस एक मिश्र ,रंगों का एक संयोजन नए रंगों की सृष्टि करता है .रंगीन दाने रंजक के तो पहले से ही कोशायें लिए थीं .रंजकों के मेल से नए रंग बनातें हैं किसी रंगरेज़ की तरह गिरगिट ,लेकिन ऐसा ये अपनी जान बचाने के लिए ,किसी आवश्यकता की पूर्ती के लिए ही करतें हैं ,नेताओं की तरह आदतन या खानदानी वजहों से नहीं .
रविवार, 1 अगस्त 2010
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